Usha Bhadoriya

Usha Bhadoriya

@usha-bhadoriya

Usha Bhadoriya shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Usha Bhadoriya's shayari and don't forget to save your favorite ones.

Followers

0

Content

11

Likes

0

Shayari
Audios
  • Ghazal
एक आश्ना अक्सर पास से गुज़रता है
मुझ पे मेरी सच्चाई आश्कार करता है

किस क़दर हटेला है तेरा बे-ज़बाँ साया
जिस्म की तरह अक्सर रूह में उतरता है

आप किस लिए मुझ को देखते हैं हैरत से
आदमी मोहब्बत में कुछ भी कर गुज़रता है

क्या ख़बर ये बस्ती ही आँधियों में उड़ जाए
इक परिंदा पर अपने खोलने से डरता है

तेरे नाम के साए रख के अपने होंटों पर
सिर्फ़ मैं बिखरती हूँ तू कहाँ बिखरता है

इक क़रीब का रिश्ता फेरता है जब नज़रें
आदमी नहीं मरता ए'तिबार मरता है

बे-ज़बाँ लकीरें हैं ना-मुराद ख़ाके हैं
देखना है अब इन में कौन रंग भरता है

ख़ौफ़ क़ुर्बतों का भी ख़ौफ़ फ़ासलों का भी
ज़िंदगी का हर लम्हा डूबता उभरता है

जब तुम्हारे बारे में सोचती हूँ मैं 'ऊषा'
आसमान से दिल में नूर सा उतरता है
Read Full
Usha Bhadoriya
कुछ तो मोहब्बतों की वफ़ाएँ निभाऊँ मैं
शादाब बारिशों की हवाएँ निभाऊँ मैं

इतने क़रीब आओ बदन भी सुनाई दे
गुज़रे दिनों की नर्म सदाएँ निभाऊँ मैं

दिल भी तो चाहता है कि सब्ज़ा कहीं खिले
बंजर ज़मीं पे काली घटाएँ निभाऊँ मैं

दरिया की लहर प्यासे किनारों को सौंप दूँ
मासूम आरज़ू की ख़ताएँ निभाऊँ मैं

शादाब हो भी सकते हैं चेहरे नसीब के
फैलाऊँ हाथ और दुआएँ निभाऊँ मैं

रह जाए कुछ तो जलते बदन पर उसे रखूँ
हर लम्हा ख़ुशबुओं की क़बाएँ निभाऊँ मैं

मंज़ूर हो तुम्हें तो मोहब्बत के नाम पर
मासूम ख़्वाहिशों की सज़ाएँ निभाऊँ मैं

ता-उम्र ज़िंदगी को निभाना मुहाल है
कुछ रोज़ सादगी की अदाएँ निभाऊँ मैं

खोलूँ न रौशनी के दरीचे निगाह में
'ऊषा' दिलों की तीरा फ़ज़ाएँ निभाऊँ मैं
Read Full
Usha Bhadoriya
अक्सर मिरी ज़मीं ने मिरे इम्तिहाँ लिए
ज़िंदा हूँ अपने सर पे कई आसमाँ लिए

बेचारगी कभी मुझे साबित न कर सकी
क्या क्या मिरी हयात ने मेरे बयाँ लिए

अपनी सदाक़तों से भी लगने लगा है डर
चलना है इस ज़मीं पे सराब-ए-गुमाँ लिए

और मैं कि अपनी ज़ात से निस्बत नहीं मिरी
हर शख़्स फिर रहा है मिरी दास्ताँ लिए

माँगी नहीं है मैं ने किसी आसमाँ से धूप
ज़िंदा हूँ अपने हाथों में अपना जहाँ लिए

सारा क़ुसूर जैसे मिरी बेबसी का था
इल्ज़ाम अपने सर पे किसी ने कहाँ लिए

उन्वान इज़्तिराब किए कितने फ़ासले
तुम ने क़दम क़दम पे मिरे इम्तिहाँ लिए

पहना उन्हें तो मैं भी धनक-पोश हो गई
अपना समझ के मैं ने तुम्हारे निशाँ लिए

'ऊषा' तमाम उम्र कटी इंतिज़ार में
आया न कोई घर में दिल-ए-मेहरबाँ लिए
Read Full
Usha Bhadoriya
अँधेरी शब में चराग़-ए-रह-ए-वफ़ा देना
तअ'ल्लुक़ात को नज़दीक से सदा देना

जहाँ खड़ी हूँ वहाँ से पलट नहीं सकती
अभी न मुझ को मोहब्बत का वास्ता देना

मैं बेबसी का सलीक़ा निभाऊँगी कब तक
बढ़े जो प्यास चराग़-ए-सदा बुझा देना

बुझे बुझे सभी मंज़र हैं आश्नाई के
मिरे लबों को कोई हर्फ़-ए-मुद्दआ' देना

उमीद हाथ से दामन अगर छुड़ाने लगे
तो फिर मुझे भी मिरे शहर का पता देना

भटक न जाऊँ कहीं ग़म की रहगुज़ारों में
निगाह-ओ-दिल को उजालों का रास्ता देना

रफ़ाक़तों को जो तन्हाइयाँ सताने लगें
उदासियों को कोई रंग-ए-आश्ना देना

अगर तुम्हें भी कोई इख़्तियार मिल जाए
तो फिर तड़पते दिलों को कहीं मिला देना

लिखे हैं अश्कों से लम्हात-ए-ज़िंदगी 'ऊषा'
उन्हें किताब-ए-मोहब्बत में तुम सजा देना
Read Full
Usha Bhadoriya
वो आँख दे क़रीब का साया दिखाई दे
आवाज़ रौशनी की कहीं तो सुनाई दे

जिस नाम को जिया है बड़े ए'तिमाद से
उस को भी ज़िंदगी से कभी आश्नाई दे

ऐसा हुआ तो जीने न देंगे किसी को लोग
इंसाँ के हाथ में न मिरे रब ख़ुदाई दे

मैं जानती हूँ पाँव रखे हैं मिरे कहाँ
ख़ुद से करूँ सवाल कोई जब बड़ाई दे

कब तक मैं लम्हा लम्हा जियूँ ख़ुद को भूल कर
इस उम्र-क़ैद से मिरे दिल को रिहाई दे

पत्थर समझ के जिस ने किया दिल को बे-असास
उस को भी आँसुओं की नमी तक रसाई दे

ऐसा न हो कि थक के यक़ीं चूर चूर हो
इतनी तवील अब न दिलों को जुदाई दे

तारीकियों को रख के कहीं खंडरात में
जो लोग पारसा हैं उन्हें पारसाई दे

'ऊषा' जो हाथ रखते नहीं मिरे अक्स पर
इन आइनों को कुछ तो ग़म-ए-ख़ुद-नुमाई दे
Read Full
Usha Bhadoriya
कहीं दुआ तो कहीं हर्फ़-ए-इल्तिजा ठहरी
मैं अपने आप में डूबी तो बे-सदा ठहरी

मैं जानती हूँ सलामत नहीं कोई दामन
ये रौशनी भी कहाँ किस का आइना ठहरी

सफ़र था शर्त मगर जब भी एक नाम आया
क़दम तो चलते रहे रूह जा-ब-जा ठहरी

तू दरमियाँ में मिला दरमियाँ में छूट गया
जो इब्तिदा थी मिरी हद्द-ए-इंतिहा ठहरी

हवा का हाथ पकड़ कर गुज़र गई ख़ुशबू
मैं तेरी राह में ठहरी अगर तो क्या ठहरी

सभी हैं ख़ुश मिरे चेहरे पे कुछ ख़राशें हैं
कोई निगाह कहाँ दर्द-आश्ना ठहरी

फिर उस के बा'द घुटन ने मुझे निहाल किया
मिरे क़रीब ज़रा देर को हवा ठहरी

सफ़र नसीब रहा सिर्फ़ तेरे नाम के साथ
तिरी नज़र में मगर फिर भी बेवफ़ा ठहरी

क़रीब आने की कोशिश तो उस ने की 'ऊषा'
मैं उस के हक़ में मगर ख़ुद ही फ़ासला ठहरी
Read Full
Usha Bhadoriya
इक तअ'ल्लुक़ सा किसी नाम से जब होता है
बे-सबब भी कोई जीने का सबब होता है

बारहा सोचा मगर तुम को बता भी न सकी
ग़म का एहसास मिरी रूह को कब होता है

ढूँढता रहता है अक्सर मिरे अंदर तुझ को
मेरी तन्हाई का आलम भी अजब होता है

यूँ ब-ज़ाहिर सभी अंजान नज़र आते हैं
जानते सब हैं कि इस शहर में सब होता है

उठ गया जैसे ज़माने से मोहब्बत का चलन
कौन अब किस के लिए ख़ंदा-ब-लब होता है

लफ़्ज़ भी खोल नहीं पाते कभी लब अपने
दूसरा नाम मोहब्बत का अदब होता है

अपने आग़ाज़ से चलती हूँ मैं अंजाम की सम्त
मेरी सुब्हों का सफ़र जानिब-ए-शब होता है

किसी तिनके का सहारा नहीं मिलता मुझ को
डूब जाना मिरी तक़दीर में जब होता है

चंद बे-नाम से रिश्ते हैं लबों पर 'ऊषा'
कोई दुनिया में किसी का भला कब होता है
Read Full
Usha Bhadoriya
हम कभी ख़ुद से कोई बात नहीं कर पाते
ज़िंदगी तुझ से मुलाक़ात नहीं कर पाते

बैठ जाता है जहाँ दर्द थका-हारा सा
ख़्वाब भी उस से सवालात नहीं कर पाते

उन से फिर और किसी शय की तवक़्क़ो' कैसी
चंद लम्हे भी जो ख़ैरात नहीं कर पाते

ज़िंदगी बे-सर-ओ-सामाँ ही गुज़र जाती है
दिन जो कर लेते हैं वो रात नहीं कर पाते

उम्र-भर उन के मुक़द्दर में हैं सूखे दरिया
अपनी कोशिश से जो बरसात नहीं कर पाते

सब्र की बात बड़ी शुक्र के दरिया गहरे
लेकिन उन से गुज़र औक़ात नहीं कर पाते

कभी भूले से मुक़द्दर जो हमें देता है
सुरख़-रू हम वही लम्हात नहीं कर पाते

इक न इक ख़ौफ़ हमें रोक लिया करता है
हम बयाँ डूबते जज़्बात नहीं कर पाते

पास आते हैं जहाँ अपने इरादे 'ऊषा'
हम कभी उन की मुदारात नहीं कर पाते
Read Full
Usha Bhadoriya
आइने से बात करना इतना आसाँ भी नहीं
अक्स की तह से उभरना इतना आसाँ भी नहीं

ख़्वाहिशें सीने में उग आती हैं जंगल की तरह
ज़िंदगी बाँहों में भरना इतना आसाँ भी नहीं

अपने ही क़दमों की आहट जिस जगह चुभने लगे
ऐसी राहों से गुज़रना इतना आसाँ भी नहीं

जानती हूँ मैं जुदा है मेरे ख़्वाबों का मिज़ाज
इन उजालों में सँवरना इतना आसाँ भी नहीं

साथ रहता है हमेशा तेरा ग़म तेरा ख़याल
अब हुआ मालूम मरना इतना आसाँ भी नहीं

कैसी कैसी ऊँची दीवारें खड़ी हैं हर तरफ़
दिल में जो है कर गुज़रना इतना आसाँ भी नहीं

रख दिया है आप की चाहत ने मुझ को जिस जगह
इस बुलंदी से उतरना इतना आसाँ भी नहीं

सोचना पड़ता है तन्हाई में ख़ुद को बारहा
अपने ही सच से मुकरना इतना आसाँ भी नहीं

जाने 'ऊषा' कितने बंधन कितने रिश्ते तोड़ कर
दिल की ख़ाली गोद भरना इतना आसाँ भी नहीं
Read Full
Usha Bhadoriya
अक्सर तन्हाई से मिल कर रोए हैं
हम ने अपने अश्क आग से धोए हैं

बहुत निभाई लेन-देन की रस्में भी
कुछ आँसू पाए हैं कुछ ग़म खोए हैं

जब भी बारिश ने मिट्टी से मुँह मोड़ा
जलते सूरज ने ज़र्रात भिगोए हैं

ख़बर जहाँ मिलती है अपने होने की
हम उस मंज़िल पर भी खोए खोए हैं

जब ख़ुद को पाना ही मुश्किल काम हुआ
क्यूँ कच्चे धागे में फूल पिरोए हैं

बाल-ओ-पर पाते ही उड़े हवाओं में
हम ने जो नज़दीक के रिश्ते ढोए हैं

तुम को क्या मालूम मिरी तन्हाई ने
लफ़्ज़ों में अपने जज़्बात समोए हैं

हम क्या जानें ख़्वाबों की नर्मी क्या है
हम कब ख़ुश्बू की बाँहों में सोए हैं

बहा न ले जाए उन को बारिश 'ऊषा'
चट्टानों पर ख़्वाब वफ़ा के बोए हैं
Read Full
Usha Bhadoriya