Vaqar Khaleel

Vaqar Khaleel

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Vaqar Khaleel shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Vaqar Khaleel's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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मनाता मौज गर चूहा मैं होता
सहर से शाम तक फिरता ही रहता
लगे जब भूक मैं मीठा चुराता
मज़े से बिल में बैठा उस को खाता
मोहल्ले के सभी बावर्ची-ख़ाने
बुलाएँगे मुझे दावत उड़ाने
मज़े से दावतें हर घर में खाता
दही मस्का मिलाई दूध उड़ाता
अगर बिल्ली चली आए झपट कर
तो घुस जाऊँगा मैं बिल दुबक कर

मनाता मौज गर मछली मैं होता
हमेशा तैरते पानी में रहता
मकाँ होता मिरा पानी के अंदर
बहुत उजला बहुत अच्छा बड़ा सुंदर
मज़े से घूमता धूमें मचाता
कभी मैं ज़ोर से पानी उड़ाता
कभी मैं मेंडकों से छेड़ करता
कभी मैं बुलबुले पानी पे लाता
शिकारी गर मुझे लेने को आता
मैं पानी की तहों में डूब जाता

मनाता मौज गर बंदर मैं होता
उछलते कूदते बाग़ों में फिरता
मज़े से झूलता पेंगें लगाता
कभी मैं शाख़ पर ही गुनगुनाता
अगर माली मुझे आँखें दिखाता
झपट कर उस की मैं पगड़ी उड़ाता
उचकते फाँदते बंगलों में जाता
मैं बच्चों को सताता मुँह चिढ़ाता
किताबें टोपियाँ बस्ते उड़ाता
किसी के सर पे फिर चाँटे जमाता

मनाता मौज गर होता परिंदा
ज़मीं से आसमाँ की सैर करता
कभी नीचे से मैं ऊपर को आता
जहाँ को शो'बदे अपने दिखाता
मज़े से घूमता फिरता हुआ मैं
कभी ठोकर नहीं खाता फ़ज़ा में
दरख़्तों पर सवेरे चहचहाता
ख़ुदा की हम्द मैं हर वक़्त गाता
कोई बच्चा पकड़ने को जो आता
भला कब उस के मैं हूँ हाथ आता
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Vaqar Khaleel
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गिरा पानी के नल से एक अण्डा
तो ख़रबूज़ा उठा फिर ले के डंडा
फ़लक पर रेल तेज़ी से चली है
हवा देखो तो पानी से जली है
नदी में तैरता ख़रगोश देखा
तो मछली ने परों को ख़ूब सींखा
मिली चूहे के बिल से एक बिल्ली
श्री कागा बने हैं शैख़ चिल्ली
कबूतर से हुई कचवे की शादी
तो भालू ने टमाटर को दुआ दी
जलेबी तैरती पानी पे आई
मज़े ले ले के भिंडी ख़ूब खाई
मचाया शोर कुछ साँपों ने ऐसा
चलाया बकरियों ने खोटा पैसा
गधे साइकल चलाए जा रहे थे
मज़े से दूध मीठा खा रहे थे
फ़लक पर उड़ रहा है एक हाथी
मियाँ घोड़े चले हैं बन के साथी
सर-ए-राह पिट गई च्यूँटी बिचारी
गिलहरी बन गई अब तो शिकारी
थपक कर मैं ने मीठे को जगाया
अंधेरे में नमक तक गुनगुनाया
मज़े से घास बंदर खा रहे थे
चबा कर पान कव्वे गा रहे थे
अज़ाँ मकड़ी ने दी नद्दी पे जा कर
मियाँ मच्छर निकल आए नहा कर
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Vaqar Khaleel
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ये रहगुज़र
रहगुज़ार-ए-ख़ूबाँ है जिस का हर मोड़ कहकशाँ है
सजल शगुफ़्ता हसीं दिल-आवेज़ ख़ूब-सूरत बहार सामाँ
इधर से गुज़र गया ज़माना कि जैसे गुज़रे रमीदा आहू
जिलौ में सुब्हों की मुस्कुराहट
लबों पे रौशन सी गुनगुनाहट
जबीं पे तक़्दीस-ए-फ़न का क़श्क़ा
नज़र नज़र में सहर के ख़ाके
लचकती बाहें महकते गेसू
सबीह अबरू गुदाज़ बाज़ू
क़दम क़दम पर पड़े हैं हल्क़े
ठहर ठहर कर बजे हैं घुंघरू
ये रहगुज़र रहगुज़ार-ए-ख़ूबाँ है जिस का हर मोड़ कहकशाँ है
ये रहगुज़र
होश-मंद मेहनत-कशों की दानिश के शाहज़ादों की रहगुज़र है
कि जिस का हर मोड़ जेहद-ओ-फ़न की अलामतों का नगर नगर है
मिरे रफ़ीक़ो
ये रहगुज़र इक नई डगर है
ये रहगुज़र फ़हम और बसीरत की रहगुज़र है
मगर अभी ज़ुल्फ़ ता-कमर है
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Vaqar Khaleel
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सड़क पर रेल तेज़ी से चली है
हवा देखो तो पानी से जली है
कहा मुर्ग़े ने ये गीदड़ से रो कर
मिरी मुर्ग़ी अभी उठी है सो कर
नदी में तैरता ख़रगोश देखा
तो मछली ने परों को ख़ूब सेंका
कबूतर से हुई कछवे की शादी
तो भालू ने टमाटर को दुआ दी
मचाया शोर कुछ साँपों ने ऐसा
चलाया बकरों ने जो खोटा पैसा
जलेबी तैरती पानी पे आती
मज़े ले ले के वो भिंडी ने खाई
गधे साइकल चलाए जा रहे थे
मज़े से दूध खाना खा रहे थे
सर-ए-रह पिट गई च्यूँटी बिचारी
गिलहरी बन गई अब तो शिकारी
थपक कर मैं ने मीठे को जगाया
अंधेरे में नमक ने गुनगुनाया
फ़लक पर उड़ रहा था एक हाथी
मियाँ घोड़े चले हैं बन के साथी
अज़ाँ बकरी ने दी नद्दी पे जा कर
मियाँ मच्छर निकल आए नहा कर
मिली चूहे के बिल से एक बिल्ली
श्री गा गा बने हैं शैख़ चिल्ली
मज़े से घास बंदर खा रहा है
चबा कर पान कव्वा आ रहा है
गिरा पानी के नल से एक अण्डा
तो ख़रबूज़ा उठा फिर ले के डंडा
सदा ये ग़ैब से एक बार आई
ज़मीन-ओ-आसमाँ में है लड़ाई
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Vaqar Khaleel
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देखो तो इस मोड़ के आगे
छोटा सा इस्कूल हमारा
लम्बी सी दीवार के अंदर
रंग रंगीला प्यारा प्यारा
कितने ही तो फूल खिले हैं
पौदे भी क्या ख़ूब लगे हैं
घंटी के बजने की सदाएँ
हम्द-ए-ख़ुदा फिर रब से दुआएँ
हाए यकायक एक धमाका
हम सब का दिल दहला जाता
काले काले बम के गोले
मौत तबाही जंग के शो'ले
ज़न ज़न नीचे आ जाते हैं
कैसी तबाही फैलाते हैं
छत इस्कूल की गिर जाती है
मेज़ पे मिट्टी भर जाती है
और पौदे भी कुम्हला जाते
फूल सिसकते आहें भरते
शहर में हर सू मौत तबाही
जंग के शो'ले हिटलर-शाही
गलियाँ सड़कें वीराँ वीराँ
जैसे हर शय हैराँ हैराँ
अम्मी और अब्बा भी परेशाँ
हर-जा मौत का शैताँ रक़्साँ
जंग का मतलब आहें आँसू
जंग का मतलब ख़ून लहू
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