Varun Gagneja Wahid

Varun Gagneja Wahid

@varun-gagneja-wahid

Varun Gagneja Wahid shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Varun Gagneja Wahid's shayari and don't forget to save your favorite ones.

Followers

0

Content

9

Likes

0

Shayari
Audios
  • Ghazal
मिल ही जानी थी मुनासिब कोई क़ीमत मुझ को
तू ने समझा है मगर माल-ए-ग़नीमत मुझ को

मेरी नींदें ही सबब हैं मिरी बेदारी का
मेरे ख़्वाबों से ही होती है अज़िय्यत मुझ को

एक रिश्ते को बचाने के लिए आठों पहर
करनी पड़ती है अमानत में ख़यानत मुझ को

सोचता हूँ कि निकल आऊँ मैं बाहर घर से
ढूँढती फिरती है कुछ रोज़ से शोहरत मुझ को

मुझ से बढ़ कर ही नहीं कोई भी अब मेरा हरीफ़
ख़ुद से हर वक़्त ही रहती है शिकायत मुझ को

अब तो हर लम्हा झुका है ये अना का पलड़ा
महँगी पड़ने लगी अब मेरी शराफ़त मुझ को

था करम कम ही कहाँ मुझ पे मिरे मालिक का
देखने की ही मिली ना कभी फ़ुर्सत मुझ को

ख़ुद को रख छोड़ा है अब मैं ने हवा पर 'वाहिद'
ले के जाती है किधर देखिए क़िस्मत मुझ को
Read Full
Varun Gagneja Wahid
थके जिस्मों थकी रूहों के सब मा'नी बदलते हैं
विसाल-ए-हिज्र के मौसम में उर्यानी बदलते हैं

घरों में बैठे बैठे ज़ंग लग जाता है जिस्मों को
चलो तालाब का ठहरा हुआ पानी बदलते हैं

बदलती देखी है दुनिया फ़क़त आँखों ने ही अब तक
चलो इक काम करते हैं कि हैरानी बदलते हैं

बड़ी मुश्किल से दो मिसरों में कोई रब्त बनता है
कभी ऊला बदलते हैं कभी सानी बदलते हैं

यक़ीनन यूँ नहीं होता मगर इक बद-गुमानी है
कोई हम से कहे आओ परेशानी बदलते हैं

तुम्हारा ज़िक्र करते हैं दर-ओ-दीवार से अक्सर
बड़ी मुश्किल से हम इस घर की वीरानी बदलते हैं

इसी मौसम में तो लगता है पहरा मेरी आँखों पर
यही मौसम तो दरियाओं की तुग़्यानी बदलते हैं

मियाँ 'वाहिद' किसी दिन बल्ली-माराँ हो के आते हैं
मियाँ नाैशा से मिल कर ये पशेमानी बदलते हैं
Read Full
Varun Gagneja Wahid
किसी भी रहनुमाई का कोई दावा नहीं करते
ग़ज़ल के पैरहन को हम मगर मैला नहीं करते

हमारी चाहतों ने तो बड़े इक़रार देखे हैं
किसी इंकार पर हम दिल कभी छोटा नहीं करते

सराबों की हक़ीक़त से बहुत अच्छे से वाक़िफ़ हैं
कभी भी ख़्वाब का हम दिन में तो पीछा नहीं करते

यहाँ हर शय की क़ीमत बस मोहब्बत ही मोहब्बत है
फ़क़ीरों से कभी जज़्बात का सौदा नहीं करते

मुसलसल हादसों ने ये भी शफ़क़त छीन ली हम से
कोई जब छोड़ जाता है तो हम सोचा नहीं करते

कभी फिर हिजरतों का उन के मन से डर न निकलेगा
परिंदे सो रहे हों जब शजर काटा नहीं करते

सजे बाज़ार में बिक जाएँ ये लालच तो है 'वाहिद'
मगर इनआ'म की ख़ातिर सुख़न हल्का नहीं करते
Read Full
Varun Gagneja Wahid