Wali Alam Shaheen

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Wali Alam Shaheen shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Wali Alam Shaheen's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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Shayari
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  • Nazm
दुनिया तो ये कहती है बहुत मुझ में हुनर है
मैं चाहूँ तो दुनिया को चमन-ज़ार बना दूँ

आ जाता है इन बातों में दुनिया के मिरा दिल
जुट जाता हूँ मैं काम में जी-जान लगा कर
फिर बे-ख़बरी हद से गुज़र जाती है मेरी
बटता नहीं चल पड़ता हूँ जब अपनी डगर पर

ये देख के कुछ रोज़ तो चुप रहती है दुनिया
दे जाती है नागाह मगर मुझ को दग़ा भी
इस दर्जा ख़फ़ा होती है वो मेरी रविश से
होगा न कभी इतना ख़फ़ा मेरा ख़ुदा भी

दुनिया को नज़र आते हैं ना-वक़्त भी मुझ में
वो ऐब कि फिर कुछ मुझे करने नहीं देती
पहुँचाती है वो चोट कि जी रहना हो दुश्वार
मरने को हूँ तय्यार तो मरने नहीं देती

दुनिया तो ये कहती है बहुत मुझ में हुनर है
मैं चाहूँ तो दुनिया को चमन-ज़ार बना दूँ
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बहार की ये दिल-आवेज़ शाम
जिस की तरफ़
क़दम उठाए हैं मैं ने
कि उस से हाथ मिलाऊँ
और इक शगुफ़्ता शनासाई की बिना रक्खूँ
फिर अपनी ख़ाना-बदोशी की मुश्तरक लय पर
उसे गुलाब-ब-कफ़ ख़ेमा-ए-जुनूँ तक लाऊँ
कुछ उस की ख़ैर ख़बर पूछूँ
और कुछ अपनी कहूँ
कहूँ कि कितने ही पतझड़ के मौसम आए गए
मगर इन आँखों की सहर-उल-बयानियाँ न गईं
कहूँ कि गरचे अनासिर ने तोहमतें बाँधीं
जुनूँ ज़दों की मगर सख़्त-जानियाँ न गईं
कहूँ कि एक हैं अंदेशे सब मिरे तेरे
कहूँ अलग नहीं जीने के ढब मिरे तेरे
कहूँ कि एक से हैं रोज़-ओ-शब मिरे तेरे
कहूँ कि मिलते हैं नाम-ओ-नसब मिरे तेरे
कहूँ अज़ल से जुनूँ कारोबार अपना है
हज़ार जब्र हो कुछ इख़्तियार अपना है
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मिट्टी की दीवार पे इक खूँटी से लटकी
मेरी यादों की ज़म्बील
जिस में छुपे थे
रंग-बिरंगे कपड़ों के बोसीदा कतरन
गोल गोल सी नन्ही मुन्नी कर धनियों के दाने
इक अमरूद की डाली काट के बाबा ने जो बनाई थी
वो टेढ़ी-मेढ़ी एक ग़ुलैल
नीले पीले मटियाले और लाल परों की ढेरी
चौड़े मुँह का इक मुँह ज़ोर सा काठ का अड़ियल घोड़ा
अपनी अकड़ में खाता हुआ बग्घी वाले का कोड़ा

इतनी मुद्दत बा'द जो खोली मैं ने वो ज़म्बील
इक नन्हा इस में से निकल कर जैसे सरपट भागा
देखता था पीछा ही वो अपना और न अपना आगा
और उलझता जाता जितना खुलता लिपटा धागा
जैसे भयानक सपने देखे कई दिनों का जागा

अब के फिर वो नज़र आया तो सरगोशी में पूछूँगा
तुम तो मेरे यार थे फिर क्यूँ
सालों साल नहीं मिलने को
अपने शुऊ'र की हैरानी का बोझ उठाए
जाने कितनी कठिन राहों से गुज़रते हो
जग वालों पर हँसते हो या छुप छुप आहें भरते हो
बस्ती छोड़ के जंगल जंगल रैन बसेरा करते हो
या फिर इक पाताल की निचली तह में उतर जा मरते हो
शायद तुम भी गौतम हो और अपने आप से डरते हो
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