Yousuf Bin Mohammad

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Yousuf Bin Mohammad shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Yousuf Bin Mohammad's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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Shayari
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  • Ghazal
तिरी मेरी बात अक्सर जो ख़मोशियों में हो गुम
ये सुकूत है कहीं पर कभी बे-ज़बान हो तुम

कोई ला-ज़वाल रस्तों की लड़ी सी ज़िंदगी है
कोई रास्ता मिले है कोई रास्ता जो हो गुम

क्या कहूँ कि बे-ज़बाँ हूँ पे खुली किताब हूँ मैं
मुझे पढ़ सको तो पढ़ लो जो कभी मुझे पढ़ो तुम

ये अकेली बात सीखी है हज़ारों महफ़िलों से
जों अकेली ज़िंदगी है तो अकेले ही रहो तुम

कोई बात क्या कहेंगे जो समझ सको समझ लो
मुझे बात कर न आई वो जो सुन सको सुनो तुम

कोई इम्तिहाँ ख़त्म है कोई काम फिर शुरूअ' है
ये जो फ़ुर्सतें हैं पल भर कहीं उन में ही जियो तुम

मिरी ज़िंदगी की बातें जो रहीन हैं तुम्हारी
क्या गदागरी है मेरी क्या कुशादा हाथ हो तुम
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Yousuf Bin Mohammad
ज़बाँ जब दिल जलाती है मैं उस से ख़ार खाता हूँ
वो अक्सर जीत जाती है मैं अक्सर हार जाता हूँ

अगर चाहूँ गुल-ओ-बुलबुल के जज़्बे खींच कर रख दूँ
मगर अपनी कमाई का गदा सच ही दिखाता हूँ

ज़बाँ की मार खाई है जो मैं ने यारो मादर की
शिकस्ता हो कि इन टुकड़ों को अब तुम पर लुटाता हूँ

अदीबों ने मुझे झाड़ा तो फेंका गो हूँ वो कीड़ा
कि उन की कुल किताबों को मैं यूँ ही चाट खाता हूँ

सलाख़ें और ज़ंजीरें हैं क्या बेजा मज़ालिम क्या
ज़बाँ की दो सलाख़ों में मैं ख़ुद को क़ैद पाता हूँ

कोई दीमक लगी लकड़ी सी कुछ यादें सँभाली थीं
वो मेरा तन गलाती थीं सो ख़ुद उन को गलाता हूँ

अगर मेरी तशफ़्फ़ी को दो बातें यार की कर दो
ज़बाँ की ही इनायत है कि ख़ुद को भूल जाता हूँ

मिरे सूखे समुंदर ने जो कुछ नक़्शे से खींचे थे
जिन्हें लहरें मिटाती थीं कभी अब मैं मिटाता हूँ

मिरी हस्सास तबीअत को तो क्या समझेंगे मैं ख़ुद को
कभी अश्कों से मुँह धो कर कभी हँस के छुपाता हूँ

जो कूड़ा-दान को शायाँ है वो मेरी अदीबी है
ये पन्नी चड़-चड़ाती है मैं जब शम्अ' बढ़ाता हूँ

कभी समझा था शाइ'र हूँ गदा लिखता था मैं ख़ुद को
जो मजनूँ बन फिरा बन में वो बन से लौट आता हूँ
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Yousuf Bin Mohammad