हमारी ज़िंदगी कुछ ऐसे यार गुज़री है
के जैसे आह में छुपके पुकार गुज़री है
अभी अभी तो बदन का शबाब उतरा है
अभी अभी तो चमन से बहार गुज़री है
तुम्हारी मस्त निगाही की हर अदा क़ातिल
हमारे दिल के सनम आर पार गुज़री है
तुम्हारी दूरियाँ खलती रहीं हमें पल पल
तुम्हारे साथ शब-ए-इंतिज़ार गुज़री है
हमीं ने शाद की ये ज़िंदगी ख़लाओं से
हमीं को जान ए जाँ ये ना-गवार गुज़री है
हर एक ख़्वाब मिरा अधपका रहा यारो
हर एक चाह मिरी बेक़रार गुज़री है
हमारे ज़ख़्म कभी भर न पाएँगे आज़ी
हमारे जिस्म से ऐसी कटार गुज़री है
Read Full