मौत का है सीधा-सीधा रास्ता
ज़ीस्त का है टेढ़ा-मेढ़ा रास्ता
है सिवा तारीकी के कुछ भी नहीं
कितना बे-बस कितना तन्हा रास्ता
और गहरा हो गया अंदर से जो
आज मैंने देखा ऐसा रास्ता
दिख रहा है दश्त तुम को जिस जगह
उस जगह पर भी कभी था रास्ता
अब नहीं परवाह मंज़िल की मुझे
चुन लिया है मैंने अपना रास्ता
मंज़िलों की थी जिसे चाहत बहुत
पास उसके ख़ुद ही आया रास्ता
तीरगी ने जब भी भटकाया मुझे
जुगनुओं ने तब दिखाया रास्ता
क़ैद हो जो घर में ही उसके लिए
मंज़िलें क्या और है क्या रास्ता
एक ही मंज़िल सभी की है सफ़र
है अलग लेकिन सभी का रास्ता
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