उदास लड़कियों से राब्ता निभाता हूँ
मैं एक फूल हूँ जो तितलियाँ बचाता हूँ
जी मैं ही इश्क़ में हारे हुओं का मुर्शिद हूँ
जी मैं ही हर सदी में क़ैस बन के आता हूँ
सताई होती हैं जो आपके समंदर की
मैं ऐसी मछलियों के साथ गोते खाता हूँ
किसी के वास्ते काँटे नहीं बिछाता मैं
मगर यूँ भी नहीं के काँटों को हटाता हूँ
मैं मौसमी हँसी का मारा हूँ कि कोई दिन
मैं साल भर में कोई दिन ही मुस्कुराता हूँ
बदन भी आते हैं और हिचकियाँ भी आती हैं
मैं जिनको भूल गया उनको याद आता हूँ
निभाने जैसा तो कुछ भी नहीं है उसमें मगर
वो मर न जाए कहीं इसलिए निभाता हूँ
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