Ehsas Muradabadi

Ehsas Muradabadi

@ehsas-muradabadi

Ehsas Muradabadi shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Ehsas Muradabadi's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
तूफ़ान-ए-मोहब्बत लाख उठे तूफ़ान से लेकिन हासिल क्या
जो डूब गई वो कश्ती क्या जो हाथ आया वो साहिल क्या

ये बर्क़-ओ-शरर ये शम्स-ओ-क़मर देते हैं निशान-ए-मंज़िल क्या
ऐ दोस्त हमें हो सकता है अंदाज़ा-ए-रंग-ए-महफ़िल क्या

क्या कहिए कि दर्द-ए-फ़ुर्क़त से 'एहसास' तड़पता है दिल क्या
तस्कीन तो माना मुमकिन है तस्कीन से लेकिन हासिल क्या

हम दूर से क्या अंदाज़ा करें क्या नाज़-ओ-नियाज़-ए-उल्फ़त थे
परवाने से होने वाली थी तौहीन-ए-मज़ाक़-ए-महफ़िल क्या

है राह-ए-मोहब्बत राह-ए-रज़ा अंदेशा-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ कैसा
मैं क्यूँ देखूँ आसान है क्या मैं क्यूँ देखूँ है मुश्किल क्या

तौहीन-तलब तौहीन-ए-जुनूँ तौहीन उरूज-ए-मंज़िल है
मैं जिस पे पहुँच जाऊँ हमदम हो सकती है मेरी मंज़िल क्या

इज़हार-ए-ग़म-ए-दिल करना तो 'एहसास' ब-हर-हाल आसाँ है
अश्कों की फ़क़त दो बूंदों का आँखों से निकलना मुश्किल क्या
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Ehsas Muradabadi
मुनव्वर हो के कितनी दास्तान-ए-आशिक़ी आई
जहाँ तक ज़िक्र-ए-ग़म आया नज़र में रौशनी आई

तिरी इक इक नज़र ले कर पयाम-ए-ज़िंदगी आई
मिरी जानिब से लेकिन कब मोहब्बत में कमी आई

जबीन-ए-शौक़ में जब कोई शान-ए-काफ़िरी आई
तो इस्तिक़बाल करने हर क़दम पर बंदगी आई

ये जान-ए-आशिक़ी है इस को किस दिल से जुदा कर दूँ
न जाने कितने ग़म सह कर तो मुझ तक बेकसी आई

ज़हे क़िस्मत कि उस को दर्द-ए-महरूमी पसंद आया
मोहब्बत ऐश-ए-दो-आलम को ठुकराती हुई आई

ये आलम है तो फिर ज़ब्त-ए-मोहब्बत से भी क्या हासिल
ज़बाँ पर उन का नाम आया कि आँखों में नमी आई

किसी सूरत में हो ये दिल की निस्बत छुप नहीं सकती
मिरे रोने पे आख़िर इक तुम्हीं को क्यों हँसी आई
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Ehsas Muradabadi
तू ही बता दे जमाल-ए-मा'नी तिरा करें इंतिज़ार कब तक
हयात का ए'तिबार हो भी निगाह का ए'तिबार कब तक

जहान-ए-ज़ुल्म-ओ-जफ़ा के मालिक कोई न हो अश्क-बार कब तक
जो दिल ही मजबूर हो चुका हो तो आँख पर इख़्तियार कब तक

मिलेंगे दामन से आ के आख़िर मिरे गरेबाँ के तार कब तक
कोई बताए कि हो सकेगा मिरा जुनूँ पुख़्ता-कार कब तक

जो की किसी ने भी पुरशिश-ए-ग़म तो चश्म-ए-मजबूर हो गई नम
मगर दिल-ए-ज़ब्त-आज़मा के बयान में इख़्तिसार कब तक

वो बाद-ए-सर-सर की बे-क़रारी वो बिजलियाँ और वो शो'ला-बारी
बस अब क़फ़स ही में मुतमइन हूँ नज़र को शौक़-ए-बहार कब तक

ख़िज़ाँ के बे-कैफ़ दौर का भी मिरे गरेबाँ ये कुछ तो हक़ है
जुनूँ को आख़िर बनाए रक्खूँ नियाज़-मंद-ए-बहार कब तक

क़दम क़दम पर सनम-कदा है नज़र नज़र में हरम का मंज़र
तजल्लियाँ ही तो हैं ये आख़िर ब-क़ैद-ए-दीदार-ए-यार कब तक
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Ehsas Muradabadi
मुक़ाबला है ग़म-ओ-अलम का तो सामना रंज-ओ-बे-कसी का
रह-ए-मोहब्बत में हर क़दम पर निशान मिलता है ज़िंदगी का

इसी मोहब्बत में हम पे गुज़रा इक ऐसा आलम भी तीरगी का
बना लिया आफ़्ताब हम ने मिला जो ज़र्रा भी रौशनी का

यकायक इक हूक दिल में उट्ठी पलट गया रंग ज़िंदगी का
ब-ख़ैर यादश मिरे लबों पर अभी अभी नाम था किसी का

जहाँ से देखो फ़साना-ए-ग़म बनी हुई इज़्तिराब-ए-पैहम
हों तेरी नज़रें भी जिस से बरहम करेंगे क्या ऐसी ज़िंदगी का

ये अहद-ए-ग़म की नहीं हिकायत थी इस से पहले भी ऐसी हालत
वहीं पे ठहरी निगाह-ए-उल्फ़त जो रंग देखा शिकस्तगी का

जो दिल पे पैहम है बारिश-ए-ग़म मोहब्बतें हो रही हैं मोहकम
इज़ाफ़ा करता है ज़िंदगी में जो दिन गुज़रता है ज़िंदगी का

बयान-ए-ग़म की लताफ़तें हैं मोहब्बतों की नज़ाकतें हैं
वगर्ना 'एहसास' सच तो ये है सलीक़ा क्या मुझ को शाइ'री का
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