Iftikhar Haidar

Iftikhar Haidar

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Iftikhar Haidar shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Iftikhar Haidar's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
तेवर भेद बताते हैं ये नम-आलूद हवाओं के
आज ज़रा खुल खेलने वाले हैं अंदाज़ घटाओं के

कमरा बंद किया और सारे ज़ब्त के बंधन टूट गए
आँखें ढीली छोड़ीं रस्ते खोल दिए दरियाओं के

दोगाना आज़ार है साहब हम जैसों की क़िस्मत में
हम मुहताज रवय्यों के और हम मजबूर अनाओं के

देख ले कितने कष्ट उठा कर तेरे दर तक पहुँचा हूँ
देख ले पपड़ी होंटों की और देख ले छाले पाँव के

खाइयाँ हैं खड्डे रोड़े हैं कंकर पत्थर हैं लेकिन
जन्नत के रस्ते लगते हैं सारे रस्ते गाँव के

उन की चाह में क़र्या क़र्या बस्ती बस्ती घूम लिए
उन की चाह में कोने खुदरे छान लिए सहराओं के

हम जो बज़्म-ए-ग़ैर में अक्सर उन की बातें करते हैं
तपती धूप में लुत्फ़ लिया करते हैं ठंडी छाँव के

तोड़ के रस्म-ए-अहद-ए-वफ़ा को आख़िर छोड़ ही जाना था
पिंजरे में आ बैठे थे पंछी आज़ाद फ़ज़ाओं के

हम मेहराब और मिम्बर वालों की आँखों को चुभते हैं
हम ने अक़्ल को रहबर माना हम मफ़रूर ख़ुदाओं के
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Iftikhar Haidar
अगर सुनानी है हर क़दम पर नई कहानी तो हार मानी
फ़रेब खाते हुए गुज़रनी है ज़िंदगानी तो हार मानी

अगर मोहब्बत तिरा रवय्या है फिर पराया तो बाज़ आया
अगर ज़माने तिरी रविश है वही पुरानी तो हार मानी

हम अपना जीवन हम अपनी ख़ुशियाँ हम अपना सब कुछ लुटा चुके हैं
अगर है फिर भी हमारी क़िस्मत में राइगानी तो हार मानी

समझ रही है अगर मोहब्बत को सिलसिला इक हिमाक़तों का
समझ रही है जो ख़ुद को तू इस क़दर सियानी तो हार मानी

नहीं बताना जो किस तनासुब से झूट है सारी दास्ताँ में
नहीं बताना जो दूध क्या और क्या है पानी तो हार मानी

सुख़न की देवी जो मेहरबाँ हो नहीं रही 'इफ़्तिख़ार' 'हैदर'
जो रुक रही है क़लम की क़िर्तास पर रवानी तो हार मानी
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Iftikhar Haidar
वैसे तो इंसान ख़ुदा का ख़ास ख़लीफ़ा बनता है
लेकिन जो हालात हैं इस के उन पर रोना बनता है

हम भी तेरे साथ खड़े हैं सब्ज़ रुतों के मंज़र में
फूल और काँटे साथ रहें तो फिर बाग़ीचा बनता है

कितनी तहज़ीबें मिटती हैं फिर बनती है इक तहज़ीब
कितनी नस्लों की मेहनत से एक रवय्या बनता है

मैं कहता हूँ क़र्या क़र्या ढूँड के मिलता है इक शख़्स
मैं कहता हूँ दरिया दरिया मिल कर क़तरा बनता है

साया क्या हम-ज़ाद भी ऐसे वक़्त में साथ नहीं देता
छोड़ के जाने वाले तेरा छोड़ के जाना बनता है

हर मौक़ा पर पीठ के पीछे ख़ंजर घोंपने वाला शख़्स
सामने जब आ जाता है तो कितना अच्छा बनता है

फ़ेलुन फ़ेलुन करने से अशआर नहीं बनते हैं दोस्त
धारो धार लहू गिरता है मिसरा मिसरा बनता है
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Iftikhar Haidar
फ़ुज़ूल नाज़ उठाने से बात बिगड़ी है
किसी को दिल में बसाने से बात बिगड़ी है

था वाजिबी सा तअल्लुक़ तो बात अच्छी थी
तअ'ल्लुक़ात बढ़ाने से बात बिगड़ी है

हम इख़्तिलाफ़ को आपस में तय न कर पाए
किसी को बीच बुलाने से बात बिगड़ी है

मोहब्बतों में तकल्लुफ़ भी है सम-ए-क़ातिल
क़दम सँभल के उठाने से बात बिगड़ी है

तुम्हारे साथ बिगड़ने पे कुछ मलाल नहीं
हमारी एक ज़माने से बात बिगड़ी है

फ़ज़ा-ए-वहम दर आई तअ'ल्लुक़ात के बीच
घड़ी घड़ी के फ़साने से बात बिगड़ी है

हम अपनी ज़ात की तरदीद कर नहीं पाए
अना के ज़ो'म में आने से बात बिगड़ी है

तिरे बग़ैर गुज़ारा नहीं किसी सूरत
उसे ये बात बताने से बात बिगड़ी है
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