वो नहीं आएगा पता है हाँ
फिर भी उम्मीद-ए-मो'जिज़ा है हाँ
उसके बिन जी सकेंगे आप नहीं
तो ये मरने की इब्तिदा है हाँ
मुझ को जो देखते हो मैं हूँ नहीं
संग का इक मुजस्समा है हाँ
मैं समझता था इश्क़ को बरकत
ओह तो ये मेरी सज़ा है हाँ
रोऊँ झुझलाऊँ और सर पीटूँ
या'नी उस की यही रज़ा है हाँ
ख़ून-ओ-खूँ हो गए हैं हम तो नहीं
हाथ पे क्या है फिर हिना है हाँ
हम जो दिल पर सजाए फिरते हैं
दर्द ये तोहफ़े में मिला है हाँ
जिस्म नोचूँ कलाई काट लूँ मैं
मर्ज़-ए-दिल की यही दवा है हाँ
ज़िंदगी इश्क़ के बिना ही रही
इश्क़ वालो की बद-दुआ' है हाँ
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