Nadeem Fazli

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@nadeem-fazli

Nadeem Fazli shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Nadeem Fazli's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
हमीं पे तंग ये वक़्त-ए-रवाँ हुआ तो क्या
दराज़ और भी कार-ए-जहाँ हुआ तो क्या

ये सुर्ख़ तलवे ये तन्हाई आख़िरी हिचकी
अब इस से आगे कोई कारवाँ हुआ तो क्या

ये रास्ते हैं बुज़ुर्गों की ख़ाक से रौशन
सो मैं भी चल के यहीं राएगाँ हुआ तो क्या

यहाँ तो शहर ही आतिश-फ़िशाँ की ज़द पर है
जो अपने सीने में थोड़ा धुआँ हुआ तो क्या

ग़ुरूर यूँ है कि उस के गदागरों में हूँ
बराए ख़ल्क़ मैं शाह-ए-जहाँ हुआ तो क्या

हमीं ने दी थी जगह उस को अपनी पलकों में
वो ज़र्रा आज जो कोह-ए-गिराँ हुआ तो क्या

जो कर सका न किसी तौर मुतमइन ख़ुद को
सवाल उठता है मोजिज़-बयाँ हुआ तो क्या

तमाम लोग समाअत से हो गए महरूम
तब अपना लहजा ग़ज़ल की ज़बाँ हुआ तो क्या

'नदीम' आँख में आँसू है सारे आलम का
वतन हमारा जो हिन्दोस्ताँ हुआ तो क्या
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अब अपनी ज़ात का इरफ़ान होने वाला है
ख़ुदा से राब्ता आसान होने वाला है

गँवा चुका हूँ मैं चालीस साल जिस के लिए
वो एक पल मिरी पहचान होने वाला है

इसी लिए तो जलाता हूँ आँधियों में चराग़
यक़ीन है कि निगहबान होने वाला है

अब अपने ज़ख़्म नज़र आ रहे हैं फूल मुझे
शुऊर-ए-दर्द पशेमान होने वाला है

मिरे लिए तिरी जानिब से प्यार का इज़हार
मिरे ग़ुरूर का सामान होने वाला है

ये चोट है मिरी मुश्किल-पसंद फ़ितरत पर
जो मरहला था अब आसान होने वाला है

अगर ग़ुरूर है सूरज को अपनी हिद्दत पर
तो फिर ये क़तरा भी तूफ़ान होने वाला है

बहुत उरूज पे ख़ुश-फ़हमियाँ हैं अब उस की
वो अन-क़रीब पशेमान होने वाला है

तू अपना हाथ मिरे हाथ में अगर दे दे
तो ये फ़क़ीर भी सुल्तान होने वाला है

चराग़-ए-दार की लौ माँद पड़ रही है 'नदीम'
फिर अपने नाम का एलान होने वाला है
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की तू ने लब-कुशाई तो किस के हुज़ूर की
अब किर्चियाँ समेट दिल-ए-ना-सुबूर की

किस के लह्हू में शाम नहा कर है सुर्ख़-रू
किस ने चुकाई ख़ून से क़ीमत ग़ुरूर की

सदियों से किस की क़ब्र पे गिर्या-कुनाँ है रात
लेटा है कौन ओढ़ के चादर ये नूर की

इल्म-ओ-कमाल आप की मीरास क्या कहा
परतें न खोलिए मेरे तहतुश-शुऊर की

तक़दीर जितना चाहे मुझे दर-ब-दर करे
मिट्टी से ख़ू न जाएगी बुर्हान-पूर की

फिर बा-अदब हैं लफ़्ज़-ओ-मआनी मिरे हुज़ूर
फिर फ़ौज उतर रही है ख़याल-ए-तुयूर की

तफ़्हीम आँ-जनाब ये 'ग़ालिब' का शेर है
कुछ अन-कही बताइए बैनस्सुतूर की

हम ख़ुद से हम-कलाम होए कम नहीं 'नदीम'
जावें कलीम सैर करें कोह-ए-तूर की
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