Tahir Adeem

Tahir Adeem

@tahir-adeem

Tahir Adeem shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Tahir Adeem's shayari and don't forget to save your favorite ones.

Followers

0

Content

27

Likes

0

Shayari
Audios
  • Ghazal
वो दर्द वो वफ़ा वो मोहब्बत तमाम शुद
ले दिल में तेरे क़ुर्ब की हसरत तमाम शुद

ये बा'द में खुलेगा कि किस किस का ख़ूँ हुआ
हर इक बयान ख़त्म अदालत तमाम शुद

तू अब तो दुश्मनी के भी क़ाबिल नहीं रहा
उठती थी जो कभी वो अदालत तमाम शुद

अब रब्त इक नया मुझे आवारगी से है
पाबंदी-ए-ख़याल की आदत तमाम शुद

जाएज़ थी या नहीं थी तिरे हक़ में थी मगर
करता था जो कभी वो वकालत तमाम शुद

वो रोज़ रोज़ मरने का क़िस्सा हुआ तमाम
वो रोज़ दिल को चीरती वहशत तमाम शुद

वो मेरे क़ुर्ब में है बहुत बे-सुकून सा
उस के सुकून को है क़राबत तमाम शुद

अब आ कि अपना अपना असासा समेट लें
अब हम पे वक़्त की है सख़ावत तमाम शुद

'ताहिर' मैं कुंज-ए-ज़ीस्त में चुप-चाप हूँ पड़ा
मजनूँ सी वो ख़जालत-ओ-हालत तमाम शुद
Read Full
Tahir Adeem
जो तिरी बंदगी से मिलता है
लुत्फ़ वो कम किसी से मिलता है

है ये काफ़ी तिरा मिरा शजरा
एक ही आदमी से मिलता है

लाख बरहम हो वो मगर यारो
फिर भी शाइस्तगी से मिलता है

दिन को लगता है धूप उस का मिज़ाज
रात को चाँदनी से मिलता है

अब तो मुझ को वो मेरी रग रग में
दौड़ती सनसनी से मिलता है

हों मह-ओ-मेहर या नुजूम तमाम
वो किसी न किसी से मिलता है

लाख भटकूँ मैं ज़ुल्मतों में मिरा
इक सिरा रौशनी से मिलता है

क़ाबिल-ए-दीद रंग होते हैं
जब कभी सादगी से मिलता है

पहले मेरी ख़ुशी से मिलता था
अब वो अपनी ख़ुशी से मिलता है

शुक्र-सद-शुक्र कि मिरा ज़ाहिर
हालत-ए-बातिनी से मिलता है

जो मुझे मौजिब-ए-मसर्रत है
दर्द भी तो उसी से मिलता है

उस में हर रंग ऊद आया है
वो मिरी शाइ'री से मिलता है

गुलशन-ए-दिल में जब बहारें हों
कौन फिर बेकली से मिलता है

हिज्र में बे-सुकून रहता हूँ
चैन भी हिज्र ही से मिलता है

अब तो इस ज़िंदगी का हर लम्हा
लम्हा-ए-आख़िरी से मिलता है

देख कर ज़र्फ़ पास आता है
दर्द कम ही किसी से मिलता है

सिलसिला-हा-ए-वुसअ'त-ए-सहरा
दिल की उस तिश्नगी से मिलता है

जब से वो आँख के फ़्रेम में है
जो है मिलता उसी से मिलता है

ऐ मुहक़क़िक़ सुराग़-ए-क़त्ल मिरा
आख़िरश ज़िंदगी से मिलता है

रोज़ वो ढूँडते हैं 'ताहिर' को
रोज़ उस की गली से मिलता है
Read Full
Tahir Adeem
इक़रार का मतलब हो कि इंकार के मा'नी
कोई तो हो समझे मिरी गुफ़्तार के मा'नी

उस जैसा कोई हो तो कहे उस की मिसालें
हो यार सा कोई तो करे यार के मा'नी

ये जिस्म दिल-ओ-जाँ तो हैं बिन माँगे ही तेरे
फिर क्या हैं तिरे दस्त-ए-तलबगार के मा'नी

इक वो कि उठाता गया बुनियाद बराबर
इक मैं कि समझता गया दीवार के मा'नी

बचपन है जवानी है बुढ़ापा है ये क्या है
मरना ही अगर है तो फिर अदवार के मा'नी

फूलों को फलों को सर-ए-अफ़्कार सजाया
या'नी कि किए यूँ लब-ओ-रुख़्सार के मा'नी

जाता है तो जाते हुए दिल को भी जला जा
जब तू ही न ठहरेगा तो घर-बार के मा'नी

हर चीज़ यहाँ अपने लवाज़िम की है मुहताज
साहब ही न ठहरोगे तो दस्तार के मा'नी

ऐ काश कि जिस के लिए कहता हूँ मैं 'ताहिर'
वो मुझ को बताए मिरे अशआ'र के मा'नी
Read Full
Tahir Adeem
मायूसी में दिल बेचारा सदियों से
ढूँड रहा है एक सहारा सदियों से

एक ही बात अबस दोहराए जाता है
तन में चलता साँस का आरा सदियों से

'हीर' अगरचे मैं ने अपनी पाली है
ढूँड रहा हूँ तख़्त हज़ारा सदियों से

तुम से कैसे सिमटेगा ये लम्हों में
दिल अपना है पारा-पारा सदियों से

किस एलान को गूँज रहा है नस-नस में
धड़कन धड़कन इक नक़्क़ारा सदियों से

कू-ए-मंज़िल-ए-इश्क़ में कोई काम मिले
दिल आवारा है नाकारा सदियों से

दिल पर क्या हम ने तो जानाँ जान पे भी
लिख रक्खा है नाम तुम्हारा सदियों से

उस ने दिल के दर्द से पूछा कब से हो
दिल से उठ के दर्द पुकारा सदियों से

ख़ुश्क पड़ा है आँख के पर्दे पर 'ताहिर'
बहर-ए-दर्द का एक किनारा सदियों से
Read Full
Tahir Adeem
शबाब-ए-मौसम हरे चमन में उतारना है
कमाल जितना भी है सुख़न में उतारना है

ख़ुदा-ए-फ़न तू मिरे क़लम में उतर कि मैं ने
किसी को ग़ज़लों के पैरहन में उतारना है

वो जितना सोना भी कोह-ए-सर में पड़ा हुआ है
बना के कुंदन किसी बदन में उतारना है

निखार दे जो मिरी नज़र के तमाम मंज़र
वो नूर सर के उजाड़-बन में उतारना है

अभी से ज़ुल्मत-कदे में थक कर निढाल हो तुम
अभी तो सूरज किरन किरन में उतारना है

ये अपनी फ़ितरत है या कि सादा-दिली है यारो
जो हँस के बोले उसे भी मन में उतारना है

हमें ख़बर है कि क्या है ये शग़्ल-ए-शेर-गोई
कि रेशा रेशा जिगर का फ़न में उतारना है

किसी को 'ताहिर-अदीम' मसनद ये सौंपनी है
किसी को दिल के अकेले-पन में उतारना है
Read Full
Tahir Adeem
गुज़रा जिधर से राह को रंगीन कर गया
जुगनू इक आफ़्ताब की तौहीन कर गया

किस ने बिठाया मुझ को सर-ए-मसनद-ए-सिनाँ
ये कौन मेरे जिस्म की तज़ईन कर गया

अश्कों ने ज़ख़्म ज़ख़्म को अंदर से धो दिया
ये ग़म तिरा तो रूह की तस्कीन कर गया

ये किस की ख़ामुशी से है नब्ज़-ए-जहाँ रुकी
ये कौन काएनात को ग़मगीन कर गया

आया था ले के ज़ीस्त में दौलत सुकून की
जाते हुए क़रार मिरा छीन कर गया

ये गाम गाम आइने किस ने बिछा दिए
ये कौन गाम गाम को ख़ुद-बीन कर गया

तोहमत मिरे वजूद को छू कर पलट गई
समझा था वो कि ज़ात की तस्कीन कर गया

ऐ कशतगान-ए-इशक़ भरम है ये इश्क़ का
रखना ये जेब चाक वो तल्क़ीन कर गया

'ताहिर' हर एक बात में जिस की मिठास थी
बिछड़ा तो ज़िंदगी को वो ग़मगीन कर गया
Read Full
Tahir Adeem
मौजूदगी का उस की यहाँ ए'तिराफ़ कर
ऐ काबा-ए-जहाँ मिरे दिल का तवाफ़ कर

कब तक फ़ुसूँ में मौसम-ए-यकसानियत रहे
ऐ राइज-उल-जहान नया इंकिशाफ़ कर

इस तल्ख़ी-ए-हयात के लम्हों का हर क़ुसूर
मैं ने मुआ'फ़ कर दिया तू भी मुआ'फ़ कर

पर्दा पड़ा है शहर की जब आँख आँख पर
तेरा भी हक़ है सच से मिरे इख़्तिलाफ़ कर

मैं सच हूँ और सामने तेरे खड़ा हूँ मैं
करना है मेरी ज़ात से अब इंहिराफ़ कर

मैं ख़ुद पे ओढ़ता हूँ तिरे प्यार की रिदा
तू ख़ुद पे मेरी चाह का उजला ग़िलाफ़ कर

ले एक एक शख़्स मिरा हम-ज़बान है
जा एक एक शख़्स को मेरे ख़िलाफ़ कर

तब अक्स अक्स उजला नज़र आएगा तुझे
तू आइना-ए-दिल पे जमी गर्द साफ़ कर

बन कर शुआ'-ए-शीशा-ए-मंशूर दिल पे पड़
रंगों का इक जहान लिए इनएताफ़ कर

चादर तमाज़तों की लिए दिन के दिल में चल
तन्हाइयों को शब के जिगर में लिहाफ़ कर

इस मोहर-बंद इश्क़ को तू भी हवा लगा
'ताहिर-अदीम' तू भी कोई इकतिशाफ़ कर
Read Full
Tahir Adeem
हुस्न-ए-शिआ'र में मुझे ढलने नहीं दिया
उस ने किसी भी गाम सँभलने नहीं दिया

हाइल रह-ए-हयात में हस्सासीयत रही
इस दिल ने दो क़दम मुझे चलने नहीं दिया

रक्खा ब-सद ख़ुलूस रग-ओ-पै में मुस्तक़िल
लम्हा कोई भी दर्द का टलने नहीं दिया

कुछ वो भी चाहता था यहाँ मुस्तक़िल क़याम
मैं ने भी उस को दिल से निकलने नहीं दिया

महफ़िल को जो दिया तिरे अंदाज़-ए-दाद ने
ऐसा मज़ा तो मेरी ग़ज़ल ने नहीं दिया

इक बार ए'तिराफ़-ए-मोहब्बत पे उम्र भर
हम ने उसे बयान बदलने नहीं दिया

दरिया हज़ार दिल में बिफरते रहे मगर
आँखों में कोई अश्क मचलने नहीं दिया

'ताहिर-अदीम' अपना दिया क्या जलाएगा
जिस ने मिरा चराग़ भी जलने नहीं दिया
Read Full
Tahir Adeem
रौशनी कर दे सर-ब-सर मौला
उस की आँखों में नूर भर मौला

सिर्फ़ तेरा उसे सहारा हो
सिर्फ़ तेरा ही उस को डर मौला

उस की ख़ुश-क़िस्मती रहे दाइम
उस से क़ाएम है मेरा घर मौला

उस की परवाज़ हो सुरय्या तक
कर दे मज़बूत उस के पर मौला

नेकियाँ हों क़रीब और क़रीब
दूर उस से हों सारे शर मौला

शब-ए-तीरा में मेरे कमसिन के
हौसलों को बुलंद कर मौला

ये मुझे इस क़दर ज़रूरी है
जैसे घर के लिए हो दर मौला

बर-ज़रूरत तसल्लियों के लिए
दौड़ कर आएँ बहर-ओ-बर मौला

सिर्फ़ कहना है लफ़्ज़ कुन तू ने
सिर्फ़ लगना है लम्हा भर मौला

हाल-ए-दिल जब बता दिया तुझ को
यूँ लगा हो गई सहर मौला

और जो कुछ न कह सका बाबा
कह रही है ये चश्म-ए-तर मौला

सब को ये कह दिया है 'ताहिर' ने
मेरा कोई नहीं मगर मौला
Read Full
Tahir Adeem

LOAD MORE