पहलू में मेरे आन के बैठा करे कोई
काँधे पे मेरे सर कभी रक्खा करे कोई
मुझको जलाने लग गई तन्हाईयों की धूप
जल्दी से आए आन के साया करे कोई
मैं जानता हूँ दर्द-ए-जुदाई है कैसी शय
शाख़ों से कोई फूल न तोड़ा करे कोई
आख़िर मैं क़ैद-ए-जिस्म में कब तक पड़ा रहूँ
कुछ पूछता हूँ मैं तो बताया करे कोई
मोती की तरह ख़ाक पे बिखरा पड़ा हूँ मैं
दामन में अपने मुझको इकट्टा करे कोई
कब तक निगाह-ए-बुग्ज़-ओ-हसद से मैं खाऊँ ज़ख़्म
मेरी भी सिम्त प्यार से देखा करे कोई
आख़िर मिरे वजूद से किसको पड़ा है फ़र्क
मिटने पे मेरे किसलिए नौहा करे कोई
कुछ पूछता हूँ ज़िन्दगी तुझसे जवाब दे
कब तक तेरे इशारों पे नाचा करे कोई
पीने के वास्ते जो शराब-ए-सुखन न हो
कैसे शब-ए-फ़िराक़ गुज़ारा करे कोई
मुश्किल हो जितनी उतना ही मिलता है हौसला
रस्ता हमारा शौक़ से रोका करे कोई
कहती हैं चीख़-चीख़ के तन्हाईयाँ अमान
बाहों में अपनी हमको समेटा करे कोई
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