तेरी यादों में बहते अश्कों से बादल बनाया है
फिर इस पाकीज़ा शय को पी के गंगाजल बनाया है
ये काला साया तेरे इश्क़ का जीने नहीं देता
इसी में धँसता जाता हूँ, इसे दल दल बनाया है
वो मेरी नज़्म को ज़ेवर समझकर पहना करती है
वो ग़ज़लें ओढ़कर सोती है, क्या आँचल बनाया है
ये इक दो तुक मिलाकर ख़ुद को शायर जान बैठे हो
ये जिसने भी तुम्हें शायर कहा, पागल बनाया है
मेरी आँखों में तेरे इश्क़ की कालिख लगी थी 'प्रीत'
जिसे मैं ने ग़ज़ल में ढालकर काज़ल बनाया है
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