सबसे बेहतर वो चेहरा दिखा था मुझे
ग़ैर हो के भी अपना दिखा था मुझे
एक भी फूल से ख़ुश नहीं होता था
वो समंदर से गहरा दिखा था मुझे
जिस्म की ख़ुश्बू भी देती बख़्शिश में पर
आँखों में ही बहाना दिखा था मुझे
आसमाँ में जो होता है कोस-ए-कुज़ाह
ठीक वैसा सुनहरा दिखा था मुझे
कोई कहने को अपना नहीं था इधर
एक मेरा ही साया दिखा था मुझे
ज़िंदगी में उसी का ही है इख़्तियार
इसलिए आज नख़रा दिखा था मुझे
इतना मसऊल होना भी अच्छा नहीं
उलझा सा इक परिंदा दिखा था मुझे
आसमाँ की तरफ़ क्यूँ मैं देखूँ भला
नीली आँखों में तारा दिखा था मुझे
दिल के बारे में क्या क्या बताऊॅं 'अनुज'
कल समंदर में सहरा दिखा था मुझे
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