आपको पता है? बॉलीवुड का सबसे बड़ा सिंगर एक कॉन्सर्ट के डेढ़ करोड़ रुपये लेता है, सबसे बड़ा एक्टर और डांसर 3-4 करोड़ की माँग रखता है। एक अच्छा हास्य- कलाकार भी 4-5 लाख रुपये लेता है। यानी जो अच्छा परफ़ॉर्मर है वो इतने पैसे कमा लेता है कि एक आराम की ज़िन्दगी गुज़ार सके।


और अगर शायर से किसी इवेंट की बात की जाए तो सबसे पहला सवाल होता है- "पैसे मिलेंगे?" ("You guys are getting paid" वाला मीम ध्यान आता है)


इतना बड़ा अंतर क्यों है? इसके ऊपर कोई कभी बात-चीत शुरू भी होती है तो इसी निष्कर्ष पर ख़त्म हो जाती है कि "शायरी सुनता ही कौन है, लोग समझ कहाँ पाते हैं, ये तो ख़ास लोगों का काम है, हम तो अदब की सेवा कर रहे हैं,जनता तो पागल है- उसकी बौद्धिक क्षमता इतनी नहीं कि हमारे शेर समझ पाए" या तो सारा दोष जनता का है, या इनका सेवा भाव ही इतना दृढ़ है कि उससे मिले पैसे को पाप समझते हैं।


मेरी उम्र और मेरा अनुभव बहुत कम है लेकिन एक दिमाग़ तो मैं रखता ही हूँ, तो उसी के आधार पर कुछ कारणों का विश्लेषण करना चाहता हूँ।


पहला- कड़वा सच तो ये है कि ज़ियादतर शायर मेहनत नहीं करते और ना ही करना चाहते हैं।(मैं परफॉरमेंस और लेखन दोनों की बात कर रहा हूँ) एक सिंगर की बैकस्टेज मेहनत देखी है आपने? सोनू निगम आज भी 2-3 घंटे रोज़ रियाज़ करते हैं। एक्टर्स की तैयारियों के किस्से तो सुने ही होंगे कि कैसे एक छोटे से रोल के लिए फलाँ एक्टर ने ये विशेष तैयारी की। या stand-up comedians को ही ले लीजिये- जो आप यूट्यूब पर उनकी वीडियोस देखते हैं उस एक्ट को वो लोग तब तक अपलोड नहीं करते जब तक उसको 1 डेढ़ साल अच्छे से perfect नहीं बना लेते। एक एक लाइन की हज़ार बार रिहर्सल होती है।


आपने किसी शायर को इसका 1% effort करते हुए देखा है? चाहे अपनी लेखनी में या परफॉरमेंस के लिए। अब आप कहेंगे कि जैसा पैसा मिलता है - वैसी मेहनत। लेकिन सोचकर देखिए क्या इसका उल्टा सम्भव नहीं है? जितनी मेहनत उतना पैसा??


क्योंकि आप सब शायरी से जुड़े हुए लोग हैं तो इस बात को बेहतर समझेंगे - आसान ज़बान में लिखना बहुत मुश्किल काम है। Shariq Kaifi सर एक इंटरव्यू में कह रहे थे कि पहले वो भी मुश्किल ज़बान में शायरी करते थे जो कि बेहद आसानी से हो जाती थी लेकिन फिर उसपर मेहनत करके,उसपर वक़्त देकर उस शायरी को इस लायक बनाया जाता था कि सबके समझ में आ सके, या जो आज की updated ज़बान है- इसको कहते हैं evolution। इसको कहते हैं effort। आज किसी से ये बात नहीं छुपी कि शारिक साहब क्या मकाम रखते हैं उर्दू अदब में। अगर आप ज़रा सा भी ज़ौक़ रखते हैं तो सबसे ज़्यादा शेर शारिक सर के ही याद होंगे आपको, ऐसा क्यों है??


बशीर बद्र इतने मशहूर क्यों हैं? मुशायरे की दुनिया या अदब की दुनिया दोनों जगह उनकी मक़बूलियत की मिसाल दी जाती है, नए लिखने वाले उनको idol मानते थे,उनसे inspire होते थे, उनके जैसा बनना चाहते थे। क्या वजह है इसकी? किस्मत? नहीं, उनकी मेहनत- मिसरे को आसान करने के हामी थे बशीर बद्र। और कई कई महीने एक मिसरे पे लगातार सोचते रहना उनके लिए आम बात थी। अक्सर अपनी बातों में मीर का शेर सुनाते थे- "पत्ता पत्ता बूटा बूटा...." और इसकी आसान और सरल बयानी की प्रशंसा करते थे।


राहत इंदौरी से बहुत लोग नफ़रत करते हैं सिर्फ़ इसलिए कि वो mesmerize कर देते थे ऑडियंस को। जब वो पढ़ना शुरू करते थे तो मन करता था पढ़ते ही जाएँ, कपिल शर्मा शो का बेस्ट एपिसोड बना दिया था उन्होंने एक ऐसी जनता के सामने जिसका अदब से कोई लेना देना नहीं- ये परफॉरमेंस कैसे आयी होगी? बिना मेहनत के??? और उनकी शायरी का मज़ाक उड़ाने वालो को चाहिए कि उनकी शायरी पढ़ के देखें तब पता चलेगा वो शायर भी बहुत अच्छे थे।


कहने का मतलब ये कि जिसने भी मेहनत की अपने आर्ट में उसको इनआम मिला है, ज़माने ने उसकी कद्र की है। आप दिल से बताईये कि शेर कहने में कितनी मेहनत करते हैं आप लोग?? या किसी मुशायरे में जाने से पहले क्या तैयारी रहती है आपकी? कितनी बार आपने "सना-ख़्वान-ए-तक़्दीस-ए-मशरिक़ कहाँ हैं" को "जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहाँ हैं" करने की कोशिश की? ये मेहनत का काम है। ख़याल सोचना एक सीढ़ी है, उसको अच्छे और evolved लफ़्ज़ों में बाँधना दूसरी सीढ़ीयाँ हैं जिनके सहारे हम छत तक पहुँच सकते हैं। कौन कौन कोशिश करता है अपने ख़याल को आज के सब्जेक्ट्स के आस पास से निकालने की।


आप सारे शायर,अच्छे एक्टर्स की तारीफ़ करते हैं तो उनसे ही सीख लो ना!! आज आपका पसंदीदा डायरेक्टर, एक्टर जो फिल्में बनाता है उसकी ज़बान क्या होती है? सब्जेक्ट क्या होते हैं? कोई बदलाव नहीं आया पिछले 50 साल के सिनेमा में? क्या आपको एक evolution, एक updation नहीं दिखता??? तो वो शायरी में क्यों नहीं दिखाते? क्योंकि थोड़ी मेहनत ज़्यादा लगेगी??


काफ़िया पैमाई तो एक नया नवेला शायर भी कर लेता है - वो भी रूह जिस्म, कहानी-किरदार, के हवाले से थोड़ी बहुत अच्छी बातें कर ही लेता है।


जानते हैं इस कामचोरी का फ़ायदा किसको मिल रहा है? कुछ openmicers को (मेरा openmics से कोई बैर नहीं वहाँ भी अच्छा काम हो रहा है और सबसे अच्छा काम उसी के ज़रिये हो सकता है)


आपने सोचा कि वो इतने पॉपुलर कैसे हो रहे हैं?? क्योंकि अच्छी शायरी अपडेट नहीं हो रही उस तेज़ी से। Openmicers सिंपल टॉपिक ले आते हैं लेकिन एक चीज़ से मात खा जाते हैं जो शायरों के पास ही है- craft!! अच्छे क्राफ्ट में ढाली गयी बात ज़्यादा दिन तक याद रहती है और ज़्यादा असर रखती है। ये सिर्फ़ हम शायरों के पास है। हम लोग उनसे ज़्यादा पॉपुलर हो सकते हैं यार- अगर मेहनत करें तो!! आज रेख़्ता का मंच कई ओपन mic pages पे भारी है, यानी ऑडियंस है हमारे पास भी। ज़रूरत है थोड़ा उन तक जाने की, आज तक आने की।


अगली समस्या है -professionalism! ये मैंने बहुत कम शायर में देखी है। quality से समझौता हर स्तर पर किया जाता है। घटिया quality की वीडियो भी इस चाव से शेयर करते हैं जैसे desperate हों अपनी शक्ल दिखाने के लिए जो साफ़ साफ़ दिखती भी नहीं।आज हम नए शायरों के पास कोई आइडल ही नहीं है जिससे professionalism सीख सकें,या जिसको follow करके हम एक balance between good and accepted बना सकें,जिससे inspire हो सकें। हमें चाहिए कि एक standard maintain करके रखें। ये बात शायद यहाँ नहीं समझाई सकती।


क्या ये परेशानियां ठीक की जा सकती हैं?? शायद हाँ। मैं अपनी उम्र के सभी पढ़ने-लिखने वालों से आग्रह करूँगा कि हमें पुरानी ग़लतियाँ नहीं दोहरानी है, जो भी शायरी करे उसको मेहनत सिर्फ़ ख़याल पर नहीं क्राफ्ट पर भी करनी पड़ेगी। शेर कहने बैठिये तो पहले thought पे ही संतुष्ट मत हो जाईये,फिल्टर्स लगाते जाईये जब तक अच्छा ना छन के आ जाए। ख़ुद को अपडेट कीजिये। जितनी सरल कर सकें उतनी करें अपनी शायरी (बस फूहड़ता या बकवास ना हो जाए, अपने कंटेंट के साथ समझौता मत करियेगा) ।


हम लोग एक साथ काम करके, इससे पैसे और इज़्ज़त दोनों कमा सकते हैं- शर्त है एक दूसरे का साथ देने की। मैं निजी तौर पे standup इंडस्ट्री का बहुत बड़ा फैन हूँ, पिछले 7-8 सालों में ही वो इंडस्ट्री आज इतनी मशहूर हो गयी कि उसके टॉप के लोग ब्रांड बन गए। अनुभव सिंह बस्सी 2018 में अपना पहला एक्ट करता है और 2019 लास्ट में उसकी मंथली इनकम लाखों में हो जाती है। मैं पैसा compare करने को नहीं कह रहा हूँ लेकिन सीखा तो जा सकता है। वहाँ के लोग अपने colleagues को हद से ज़्यादा promote करते हैं (उनका ट्विटर account देखिएगा कभी) और यहाँ शायरी में? क्या ज़रूरी है कि अच्छा शायर गुमनाम रहे?


जो भी लोग ये पढ़ रहे हों मेरी गुज़ारिश है कि थोड़ा साथ दीजिये, इज़्ज़त के साथ साथ पैसा भी बनाइये शायरों के लिए, इसमें मेहनत लगेगी- परफॉरमेंस सुधारने में, शेर कहने में। सोचिए कितना अच्छा हो कि आपके पास एक हुनर हो, आप को एक काम करना बहुत पसंद हो और वो काम करके आप अपना जीवन गुज़ार सकें सम्मानजनक अवस्था में! अगर आपके हाथ में कोई इवेंट है तो उसमें शायरों को ज़रूर बुलाइये जिनकी शायरी समझ में आ सके। corporate shows में अच्छे शायरों को बुलवाइए, अपनी अपनी companies में, colleges में- जहाँ मौका मिले आप अपने लोकल आर्टिस्ट को प्रमोट कीजिये। We generally promote what already is promoted enough! सलमान खान या अनुराग कश्यप को प्रमोट करके कुछ नहीं होगा - ना उनका भला ना आपका!


आप और मैं एक ही कम्युनिटी के लोग हैं, अगर 40-50 लोग भी साथ आकर अच्छा काम करने लगें तो वो होगी अदब की सेवा। सोचिए बशीर बद्र जैसी ज़बान में अगर शायरी होने लगे तो? शारिक साहब की तरह आज के सब्जेक्ट्स शायरी में आने लगें तो? राहत साहब जैसी परफॉर्मेंस हो जाए तो? ये फील्ड कितनी तेज़ी से ग्रो कर जाएगी।


इसमें बहुत स्कोप है यार, इस वक़्त के हिंदुस्तान के सबसे अच्छे नए शायर आपकी फ़्रेंडलिस्ट में ही हैं- जो अपने काम पर बहुत मेहनत करते हैं और उनके ही शेर हर कोई quote करता है! गिनती की जाए तो 50 लोग निकलेंगे ऐसे। (जो स्टेज पर अच्छा परफॉर्म कर सकते हैं, और जिनकी शायरी भी अच्छी है) ये सबसे अच्छा समय हो सकता है अदब का। इसको आम कर देना ही हम लोगों की कामयाबी होगी। हमने अगर थोड़ा सही तरीके से,और बिना जलन भावना के काम किया तो आने वाले लोग शायरी को भी एक करियर ऑप्शन की तरह देखेंगे। ये उम्र भर का "शौक़" मात्र नहीं रहेगा। आज देश में अच्छी शायरी की बहुत डिमांड है, लोग निर्भर हैं हमपर!


अगर ऐसा नहीं हो पाया तो फिर हम देखेंगे एक generation को frustration और depression का शिकार होता हुआ। ये दुनिया का सबसे बड़ा दुख होता है कि आपके हुनर की कद्र न हो। फिर कोई काम ठीक से नहीं हो पाता।


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