तो आप शाइरी सीखना चाहते हैं? अब ये कोई सिलेबस को पढ़ने की तरह सीधा सीधा काम होता तो हर साल शाइर झुँड में ग्रैजुएट होते। पर ऐसा भी नहीं कि ये इतना मुश्किल है। मुश्किल यहाँ शाइरी के नियम कतई नहीं हैं, बल्कि मुश्किलात नियम सीखने के बाद अपने अंदर शाइरी लाने की है। ज़्यादातर लोगों के अंदर शाइरी जाना ही नहीं चाहती। ऐसा इसलिए क्यूँकि वो अकेले नहीं जी सकते, वो अपने आप से बाहर दुनिया नहीं देख सकते, ज़्यादातर लोग बस लोग होते हैं, शाइर नहीं। हर आदमी जिसको ये लगता है कि उसके लिए सबसे ज़रूरी आदमी वो खु़द है, वो कभी शाइरी नहीं कर सकता। न ही वो कर सकता है जिसे आज तक मालूम ही नहीं चला कि उसे महसूस होता क्या है और क्या नहीं। कुछ ऐसे भी लोग हैं जिन्होंने शाइरी के नियम तो जान लिए पर शाइरी की समझ कभी न पा सके। पर उन्होंने हार नहीं मानी, वो शेर कहते रहे। मुझे ऐसे लोग निहाँ फिज़ूल लगते हैं। अगर आपको पता चलता है कि आप कभी शाइर नहीं हो सकते तो क्यों मानव जाति का वक्त बर्बाद कर रहे हैं, हराम की ज़िन्दगी की तलब़ क्यों है आपको। जाइए कुछ और रोज़गार देखिए।
खैर जिन लोगों को ये जानना है कि शाइरी कब की जाए उनके लिए मैं Charles Bukowski की लिखी और वरूण ग्रोवर द्वारा अनुवादित एक कविता छोड़ जाता हूँ! आप देख लें!
मत लिक्खो,
अगर फूट के ना निकले
बिना किसी वजह के
मत लिखो।
अगर बिना पूछे-बताए ना बरस पड़े,
तुम्हारे दिल और दिमाग़
और जुबां और पेट से
मत लिखो।
अगर घण्टों बैठना पड़े
अपने कम्प्यूटर को ताकते
या टाइपराइटर पर बोझ बने हुए
खोजते शब्दों को
मत लिखो।
अगर पैसे के लिए
या शोहरत के लिए लिख रहे हो
मत लिखो।
अगर बैठ के तुम्हें
बार-बार करने पड़ते हैं सुधारजाने दो।
अगर लिखने की बात सोचते ही
होने लगता है तनाव
छोड़ दो।
अगर किसी और की तरह
लिखने की फ़िराक़ में हो
तो भूल ही जाओ
अगर वक़्त लगता है
कि चिंघाड़े तुम्हारी अपनी आवाज़
तो उसे वक़्त दो
पर ना चिंघाड़े गर फिर भी
तो सामान बाँध लो।
अगर पहले पढ़ के सुनाना पड़ता है
अपनी बीवी या प्रेमिका या प्रेमी
या माँ-बाप या अजनबी आलोचक को
तो तुम कच्चे हो अभी।
अनगिनत लेखकों से मत बनो
उन हज़ारों की तरह
जो कहते हैं खुद को ‘लेखक’
उदास और खोखले और नक्शेबाज़।
दुनिया भर की लाइब्रेरियां
त्रस्त हो चुकी हैं
तुम्हारी क़ौम से
मत बढ़ाओ इसे।
दुहाई है, मत बढ़ाओ।
जब तक तुम्हारी आत्मा की ज़मीन से
लम्बी-दूरी के मारक
रॉकेट जैसे
नहीं निकलते लफ़्ज़,तब तक चुप रहना
तुम्हें पूरे चाँद की रात के भेड़िए-सा
नहीं कर देता पागल या हत्यारा,
जब तक कि तुम्हारी नाभि का सूरज
तुम्हारे कमरे में आग नहीं लगा देता
मत मत मत लिखो।
क्यूंकि जब वक़्त आएगा
और तुम्हें मिला होगा वो वरदान
तुम लिखोगे और लिखते रहोगे
जब तक भस्म नहीं हो जाते
तुम या यह हवस।
कोई और तरीका नहीं है
कोई और तरीका नहीं था कभी।
इसके बाद बात आती है छोटे मोटे नियमों की तो वो तो आप कोई 150 रूपये की किताब मँगवा कर सीख सकते हैं। इन ब्लॉग्स में मैंने ये काम अपने सर लिया है। इसमें आपको उच्चारण से लेकर ग़ज़ल और नज़्म कहने के बुनियादी उसूल बताए जाएंगे। ज़रूरी डिस्क्लेमर ऊपर बता दिया है, बाद में मत बोलना बताया नहीं। ज़रूरी शब्दों के मतलब याद करने की ज़रूरत नहीं है, बात समझने की ज़रूरत है।
शाइरी की बुनियाद
हर भाषा की कविता या शाइरी की बुनियाद लय होती है। लय में होना ही इसे गद्य यानी prose से अलग करता है। लय का जुड़ाव ताल से है और कुदरत की हर चीज़ में ताल है। सांस लय पर चलती है, दिल लय में धड़कता है। इंसान शायद इसलिए ही अपनी बोलचाल में लय की जगह चाहता है या पहले ये उसे महसूस कर पाता है। उसने भाषा बनाई ताकि इस अंदरूनी लय और ताल को कहीं तो व्यक्त कर सके, ज़ाहिर कर सके।
शाइरी में ये ताल, ये तरन्नुम, दो लाइनों में लफ़्ज़ों के अनुपात यानी ratio से पैदा होता है। basic mathematics है कोई भी काव्य शास्त्र। हम इसी mathematics को जानना चाहते हैं। मैं फिर कह रहा हूँ, यहाँ facts याद करने की कोई ज़रूरत नहीं है, मैं खुद ये facts किताब की मदद से लिख रहा हूँ। बात समझिये!
देवनागरी लिपि में उर्दू लिखना
जैसा कि आपने बचपन में पढ़ा होगा, देवनागरी लिपि में हर्फ़ों के दो किस्म होते हैं,
1) स्वर
2) व्यंजन
स्वर आज़ाद अक्षर होते हैं। व्यंजन को लिखने के लिए स्वर की ज़रूरत पड़ती है। हिंदी और उर्दू की देवनागरी में बस ये अंतर है कि यहाँ कुछ पांचवे व्यंजन जैसे ञ, ण वगैरह नहीं पाए जाते। क्ष, त्र ,ज्ञ जैसे अक्षर भी नहीं हैं। कुल 29 व्यंजन बचते हैं , उसपर कुछ नये 5 अक्षर जैसे : क़,ख़, ग़,ज़,फ़। सो total 34।
अगर आपको कुछ कुछ वो सब याद आ रहा हो जो आपने बचपन में पढ़ा है तो आगे चलते हैं। अगर भूल रहे हैं तो बच्चों की हिंदी writing किताब की तलाश करें। doubts comments में पूछें।
देखिए, देवनागरी लिपि में उर्दू भाषा को pronunciation के तरीके से लिखना तो आसान है, पर शाइरी में pronunciation के कुछ अपने नियम हैं, जो आपको सुनने में थोड़े अजीब लगेंगे, पर ज़रूरी हैं शुद्ध लिखने के लिए।
1) कुछ अक्षर लघु कहे जाते हैं, कुछ अक्षर गुरु। अ, इ, उ, ए लघु हैं। आ, ई, ऊ, ऐ गुरु हैं। सारे व्यंजन गुरु हैं। ऐसा इसलिए क्यूँकि उनमें पहले से स्वर भी हैं। क्, ख्, ग् ऐसे शब्द जो शुद्ध व्यंजन हैं, जहाँ कोई स्वर इस्तेमाल में नहीं आया, बस उन्हें लघु कह सकते हैं।
पर बहुत सारे लफ़्ज़ों में अक्षर लघु और गुरु के बीच की होती है। न उनका pronunciation लघु की तरह कम देर तक होता है, न ही गुरु की तरह ज़्यादा देर तक का। जैसे :-
• कुछ शब्दों के उच्चारण में "अ" और "ए" के बीच वाला एक शब्द सा आता है। यानी न ही वो पूरी तरह से "अ" के उच्चारण में हैं, न ही "ए" के। बीच का सा कुछ है। for example :-
शहर में "श" के उच्चारण में "अ" नहीं आता। आप इसको शाइरी में शहर नहीं पढ़ेंगे, शेहर पढ़ेंगे। लिखेंगे शहर ही, लेकिन पढ़ेंगे शेहर। कारण आपको बता दिया है उपर।
एक शेर पढ़िए,
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यहाँ शहर को शेहर पढ़िए, ज़्यादा लुत्फ़ आएगा।
• कुछ शब्दों के उच्चारण में "इ" और "ए" के बीच का लफ़्ज़ आता है, जो पूरी तरह न "इ" है, न ही "ए"। एक मिश्रण है।
जैसे : इंतेज़ार को देखिए, यहाँ "ते" में इ और ऐ दोने के गुण मौजूद हैं। आपने कई बार लोगों को इंतिज़ार करते देखा होगा, वो गलत नहीं कर रहे थे। इंतेज़ार करने वाले और इंतिज़ार करने वाले करते एक ही चीज़ हैं, बस उन्हें ये बात नहीं पता है कि लिक्खा जाएगा इन्तेज़ार, पढ़ा जाए "इंतिज़ार"!
• कुछ शब्दों में उच्चारण "ए" और "इ" के बीच का होता है। ये पिछले नियम से अलग बात है। example देता हूँ, समझिएगा!
कहूँ किस से मैं कि क्या है शब-ए-ग़म बुरी बला है
ये मिसरा ग़ालिब का है, ज़रूरी ये नहीं। यहाँ "कि" को देखिए। बहुत से लोग इसे "के" पढ़ेंगे। पढ़कर देखिए! आपको ये ज़्यादा लुत्फ़ देगी। बस यही मतलब हुआ। लिक्खा जाएगा कि, पढ़ा जाएगा के, यानि दोनों के बीच का सा कोई लफ़्ज़, अगर कोई होता।
• कुछ शब्दों के उच्चारण “ओ” और “उ” के दरमियान के होते हैं, जैसे :- बहोत, इसे बहुत नहीं लिक्खेंगे! और पढ़ते वक्त भी ध्यान रखिये कि बोलना न बहुत है, न बहोत। इन दोनों का मिश्रण सा कुछ बोलना है।
2) कुछ लफ़्ज़ जिनके अंत में (:) सर्ग आए, उसका उच्चारण आ की तरह होता है। जैसे :- लिक्खा जाता है “अफ़सान:”, पढ़ेंगे अफ़साना।
इसके अलावा कुछ अल्फाज़ लिक्खे कुछ जाते रहे हैं और उन्हें पढ़ा जाएगा! जैसे लिखते हैं, “ यह”, “वह”, “ पर” लेकिन पढ़ते वक्त “ये”, “ वे”, “पे” पढ़ेंगे।
3) इज़ाफ़त और वाव अतफ़
इन लफ़्ज़ों में मत फँसियेगा, भरोसा रखिये अदर आपका वास्ता ज़रा सा भी उर्दू से रहा है तो आप इन्हें न सिर्फ जानते होंगे, बल्कि रोज़ाना शाइरी में इस्तेमाल भी करते होंगे। आइये एक एक करके देखते हैं,
इज़ाफ़त
उर्दू भाषा में बहोत सी तरकीबें होती हैं जिनसे आप “का”, “ की” , “के” को आगे पीछे के दोनों शब्दों के साथ जोड़कर एक बना सकते हैं।इस तरकीब को इज़ाफ़त कहते हैं।
जैसे :- दिल का ग़म को “ग़मे-दिल” लिखिए, ग़म की शाम को
शामे-ग़म लिखिए। अब यहाँ आप ये समझ लीजिये कि ग़मे-दिल और दिल-ए-ग़म में अंतर है। दिल-ए-ग़म यानि ग़म का दिल जिसके माअनी ज़ाहिर है कि दिल का ग़म से अलग है|
वाव अतफ़
दो शब्दों के बीच मे और आए तो आप उन्हें भी छोटा करके लिख सकते हैं। जैसे :- शब और रोज़ को शबो-रोज़ लिखिए। चुंकि उर्दू में “ओ” के उच्चारण वाले हर्फ़ को “वाव” कहते हैं इसलिए इस तरकीब को वाव अतफ़ कहते हैं।
इज़ाफ़त और वाव अतफ़ को इस्तेमाल करने से पहले कुछ ज़रूरी बातें
1) अगर आप दो लफ़्ज़ों को इज़ाफ़त से जोड़ रहे हैं और पहले लफ़्ज़ के अंत में “अ” की आवाज़ आए, तो आप लिखते वक्त “ए” को “अ” के साथ संयुक्त करके “ऐ” बना दीजिये।
जैसे :- शाम-ए-ग़म मत लिखिए, शामे-ग़म लिखिए। आप पूछेंगे क्यों भला? क्योंकि यही सही है।
2) अगर आप दो लफ़्ज़ों को इज़ाफ़त से जोड़ रहे हैं और पहले लफ़्ज़ के अंत में “आ”, “ इ” या “उ” की आवाज़ आए, तो फिर वो शब्द वैसे ही रह जाएगा और “ए” अलग से लगेगा।
जैसे :- दुनिया-ए-ग़म सही तरकीब है, यहाँ ए और आ जुड़कर नहीं लिखे जा सकते। उसी तरह
वादी-ए-ग़म सही है, कू-ए-ग़म सही है। इनमें संयुक्त न आप बना पाएंगे, न बनाने की ज़रूरत है।
3) इज़ाफ़त की तरह वाव अतफ़ के लिए भी ये बात याद रखियेगा कि अगर और से पहले वाले शब्द का आखिरी हर्फ़ “अ” हो तो “ओ” के साथ जोड़कर “ओ” ही बना दीजिये।
जैसे :- रोज़-ओ-शब मत लिखिए, रोज़ो-शब सही है।
हाँ, पर ये भी खयाल रखिये कि अगर आखिर हर्फ़ “अ” न होकर “आ”, “ इ” या “उ” रहे तो “ओ” को अलग ही रखिये, संयुक्त मत कीजिये। जैसे :- दुनिया-ओ-दिल ना कि दुनियाओ-दिल।
चलिए ये तो रही आज की क्लास। यहीं खत्म। आने वाले ब्लॉग्स में लफ़्ज़ पढ़ना, गिनना और फिर बहर यानि मीटर की पेचीदगी पर गौर किया जाएगा। हाँ! जाते जाते एक बात पर गौर करवाता जाऊँ। देखिए आप उर्दू लिखते वक्त आपको खुली छूट है कि आप english या हिन्दी के शब्द इस्तेमाल किजिए बस ये ध्यान रखिये कि फिर जो लहजे में आप लिख रहे हैं वो खूबसूरती को बढ़ा रहा है या नहीं। फिज़ूल में fashion में english शब्द क्यों करना चाहते हैं, इससे अच्छा एक उर्दू लुग़त यानि dictionary ले लीजिए और अपनी word power पर काम किजिए।
जैसे :- अली ज़रयून का ये शेर देखिए
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यहाँ फिज़ूल के मौज़ू पर फिज़ूल का अंग्रेजी का शब्द घुसाया गया है, जिससे निहायत अच्छी ग़ज़ल की खुबसूरती अकेले इस शेर ने खत्म कर दी। ये ना करें।
बाकी तहज़ीब हाफ़ी की नज़्म की शुरुआती लाईनें देखिये,
जब वो इस दुनिया के शोर और ख़मोशी से क़त’अ-तअल्लुक़ होकर इंग्लिश में गुस्सा करती है,
मैं तो डर जाता हूँ लेकिन कमरे की दीवारें हँसने लगती हैं।
यहाँ English को English लिखना अपनी बात की खुबसूरती यूँ बढ़ा रहा है कि शाइर का अमूमन लड़की की बोली गई बातों को विशेष दर्जा या “special attention” देने की ज़रूरत होती है। जो कि हाफ़ी ने बखूबी अंजाम दिया है।
बाकी और कुछ नहीं, बस इन बातों को ध्यान दें और एक बार हिन्दी वर्णमाला revise कर लीजिए, काम आएगा। ऐने वाले वक्त में हम बहोत कुछ सीखने वाले हैं।
शुक्रिया!
Ridam Mishra
जी चाहता है भूल जाऊं उसे,
और फिर आ जाता है उसका ख्याल ही!