About
चादर की इज्जत करता हूं और पर्दे को मानता हूं
हर पर्दा पर्दा नहीं होता इतना मैं भी जानता हूं।
1983 में फैसलाबाद में जन्मे अली ज़रयून, सबसे प्रमुख आधुनिक पाकिस्तानी कवियों में से एक है। अली एक बहुभाषी कवि, गीतकार और विचारक हैं। उन्होंने उर्दू, हिंदी, फ़ारसी, पंजाबी और अंग्रेज़ी में कविताएँ लिखीं। अली ज़रयून की कविता में एक विशिष्ट और साहसिक कहानी है, जिसके माध्यम से वह समाज में रूढ़ियों को चुनौती देते हैं और अपने पाठकों को अहसास दिलाते हैं।
लोग नहीं डरते रब से
तुम लोगों से डरती हो
किस ने जींस करी ममनूअ'
पहनो अच्छी लगती हो।
अली ज़रयून ने "दर्शन, तर्क, इस्लामी इतिहास, मुस्लिम सूफी परंपरा, मुस्लिम धार्मिक विज्ञान, पश्चिमी साहित्य और का ज्ञान प्राप्त किया। अली ज़रयून जब अपनी शायरी में romanticism पे आते हैं तो उनकी शायरी सारी हदे तोड़कर, टूट के रोमांस करती नजर आती है, और जब सोशल इश्यूज़ पे आते है तो लगता है इस शख्स को मोहब्बत छू के भी नहीं निकली हो।
मैं पांव धोके पियूं, यार बनके जो आए
मुनाफ़िक़ों को तो मैं मुंह लगाने वाला नहीं।
बहुत से लोगों को ये ग़लतफेमी है कि अली ज़रयून महान शायर 'जॉन एलिया' के बेटे है क्योंकि ज़रयून का मुशायरों में शेर-ओ-शायरी करने का अंदाज़ जॉन एलिया से मेल खाता है। मौजूदा दौर में अली ज़रयून की शायरी को चाहने वाले भारत समेत पूरी दुनिया में मौजूद हैं।उनकी शायरी में सादगी और रूहानियत आप महसूस कर सकते हैं।