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तुम्हें हुस्न पर दस्तरस है, मोहब्बत वोहब्बत बड़ा जानते हो
तो फिर ये बताओ कि तुम उसकी आंखों के बारे में क्या जानते हो?
नए अंदाज़ से भरपूर, खूबसरत लब-औ-लहजे के इस शायर का असल नाम तहजीब अल हसन है। तहज़ीब हाफी का जन्म 5 दिसंबर 1989 को तौनासा शरीफ पंजाब पाकिस्तान में हुआ। तहज़ीब हाफी के पिता हैदराबाद पंजाब में मुलाजिम है। हाफी ने मेहरान यूनिवर्सिटी हैदराबाद से 'सॉफ्टवेयर इंजीनियर' की और फिर बहावलपुर यूनिवर्सिटी से उर्दू में 'एम ए' किया और आजकल लाहौर में मुकिम है।
तहज़ीब हाफी एक हुस्न परस्त और आशिक़ मिज़ाज शायर है इनकी शायरी मै इक तरफा मोहब्बत करने वाले आशिक़ का दर्द कुट कुट कर भरा है।
सब परिंदों से प्यार लूँगा मैं
पेड़ का रूप धार लूँगा मैं
तू निशाने पे आ भी जाए अगर
कौन सा तीर मार लूँगा मैं?
तहज़ीब हाफी अपनी शायरी से मानो ये बताना चाहते है कि इश्क में हार हो या जीत, महबूब से मोहब्बत करना कभी बन्द नहीं करना चाहिए।
उस की मर्ज़ी वो जिसे पास बिठा ले अपने
इस पे क्या लड़ना फलाँ मेरी जगह बैठ गया
उनकी हर ग़ज़ल में पर्यावरण से संबंधित शायरियां हैं। ज्यादातर पेड़ों के बारे में। रेत, नदियां, जंगल और दरख्त (पेड़) के बारे में शायरी है।तहज़ीब हाफ़ी प्रकृति का पालन करते हैं, और उनकी शायरी से ऐसा लगता है कि वह प्रकृति से दोस्ती करना चाहते हैं। जैसे
फरेब दे कर तेरा जिस्म जीत लूँ लेकिन
मैं पेड़ काट के कश्ती नहीं बनाऊंगा।
नौजवान नसल तहज़ीब हाफी को इसलिए भी बहुत ज्यादा पसंद करती है क्योंकि वो समझते है कि हालिया दौर में उनकी बात को शायराना अंदाज़ में पेश करने वाले चुनिंदा शायर में से एक शायर तहज़ीब हाफी है।
जो तेरे साथ रहते हुए सोगवार हो,
लानत हो ऐसे शख़्स पे और बेशुमार हो।