मैं यहाँ तुम्हें ये बताने की कोशिश करने जा रहा हूँ कि इश्क़ कैसे करते हैं। नहीं, मैं तो खुद इश्क़ का तालिब-ए-इल्म हूँ। मैं तुम्हें इतना बता सकता हूँ कि मुझे एक कोचिंग के बारे में पता है जिसने न सिर्फ इश्क़ की हर इक कैफियत से खुद को गुज़ारा बल्कि हर कैफियत को जीने में कोई किफायत न की और इस विषय में काफी अच्छे नोट्स बनाये। मैं जौन एलिया की बात कर रहा हूँ और जिस नोट्स की बात मैं कर रहा हूँ वो उसकी शायरी है। 


इस सरमायादार दुनिया में जहाँ इल्म भी रकम की जा सकती है, वहाँ हर इक हूनर को सिखाने का बाज़ार सजाया जा चुका है। तो इश्क़ करना भी तो सिखाया जाना चाहिए! परेशान मत हो, मैं वादा करता हूँ कि पैसे नहीं लूंगा मगर मैं जौन के बारे में कुछ नहीं कह सकता। पर हाँ वो खुद बहुत मोटी रकम का मालिक था मरने से पहले सो उसे पैसों कि ख्वाहिश नहीं होगी ये तो मान के चलो। पर हो सकता है कि तुम्हें जौन से ट्यूशन पढ़ने के बाद उम्रभर उसे कर यानी tax देते रहना पड़े और वो कर भी वही तय करेगा। 


तो शुरू करते हैं.... क्या लगता है? क्या है इश्क़?
एक अंग्रेज़ी शाइर Charles Bukowski की माने तो


Love is the dog from Hell.


यानी इश्क़ या मोहब्बत नरक का कुत्ता है। 


जब तक तुम इस जुमले से पैदा हुए सदमे से बाहर आओ लो सुनो कि जौन का इस बारे में क्या कहना है... 



यानी जौन तो इसे कातिल और धोखेबाज़ कह रहा है। पर शायद तुमने तो एक खूबसूरत सी तस्वीर तसव्वुर करके इश्क़ की क्लास में कदम रक्खा होगा कि प्यारी प्यारी बातें सुनने को मिलेंगी। दोस्त! दुनिया की कोई भी अफ्लातूनी शै एक रंग की नहीं होती। इश्क़ की अपनी दुश्वारियां, मजबूरियाँ और तो और अपनी बदसूरत शक्ल है। 


इश्क़ वो आईना है जो आपको आपकी वो जानकारी दे सकता है जो शायद आप सुनना नहीं चाहेंगे। हम, तुम और हममें से ज़्यादातर लोग इश्क़ करते हुए अपने इश्क़ को मुकम्मल चाहते हैं और चाहें भी क्यूँ नहीं! मगर फिर हमें ये कभी समझ नहीं आता कि इश्क़ तो नामुकम्मल होने का जश्न है। ये एक ऐलान ए आम है कि एक शख्स है जिसे आपके शिकस्त की पूरी पूरी जानकारी है। वो शख्स ये भी जानता है कि आप अपने अंदर किस शैतान को पनाह देते हैं और वो शख्स आपके अंदर के शैतान को कभी मरने नहीं देगा चुंकि आपने लोगों की भीड़ में उस एक शख्स का इंतिख़ाब ही उस शैतान की मौजूदगी में किया है। जौन का शेर सुनो कि



वाकया मिस्र का है। इसे पूरा तो नहीं सुना सकूंगा पर ये कुरआन का सबसे अफज़ल किस्सा कहा गया है। जब खुदा के बंदे युसूफ को मिस्र की रानी ज़ुलेखा ने पसन्द किया था। वो चाहता तो उस रानी के साथ जिस्मानी रिश्ता कायम कर लेता। जौन कहना चाहता है कि उसने नहीं किया। और करे भी क्यूँ? जौन के हिसाब से ज़ुलेखा के साथ का रिश्ता न करना युसूफ की कोई ईमानदारी का सुबूत नहीं था बल्कि उसे ये दिख रहा था कि ये घाटे का सौदा है। और फिर जो कहानी में हुआ सबको मालूम है। कैसे युसूफ ने सबके सामने अपना मर्तबा साबित किया !
इश्क़ दरअसल एक इंतिहाई खुदगर्ज़ शै है कि जिसमें आप एक शख्स इंतिखाब करते हैं और उसके इर्द गिर्द आपकी दुनिया को घुमाना चाहते हैं। पर जब आपको ये मालूम होता है कि उस शख्स में वो तमाम खामियां हैं जो इस दुनिया की खामियां हैं तो फिर इश्क़ अपनी पहली करवट लेता है। जहाँ आप इस बात से समझौता कर अपनी नज़रों को उस शख्स की अच्छी बातों का काइल रखकर ज़िन्दगी गुज़ार लेता है। 


पर जौन नहीं कर पाता... वो कहता है... 



ये देखो, मतलब जौन जिस perfection की तलाश में है उसकी तुलना में शायद बाकी हुस्न ( दोनों तरह का अंदरूनी और बहरूनी ) फ़क़त परछाईयाँ हैं। 


क्या ये कुछ ज़्यादा की ख्वाहिश नहीं है? बिल्कुल है! और इसका कारण महज़ इंसान की नरगिसी अना नहीं बल्कि उसकी ज़ेहनी पेश ओ पेश है। पर क्या इसका कोई जवाबी असर नहीं होता? बिल्कुल होता है। वो शख्स जो आजतक आपको इतनी नज़दीक से जानता था, आपके बिना मर जाने की कसमें खा रहा था, वो अब एक ज़ेहनी शैतान बनकर आपको ये एहसास दिलाने पर उतारू हो जाता है कि कमी आप में ही कुछ है। 


जौन के कई शेर दिमाग में आते हैं.... 



हर शख्स अपने आपको खुदा तसव्वुर करता है। पर सच तो ये है कि इश्क़ में खुद को खुदा कहना कयामत बुलाने जैसा है। जौन हार गया है। इस शेर में वो एक ही समय पर तंज़ पर रहा है और अपनी शिकस्त ए इश्क़ का ऐलान भी। "you deserve better" का ही ये एक दूसरा रूप है


एक और शेर सुनिए... 



एक बार को तो लगता है कि इस मुकाम पर जब आशिक को अपने इश्क़ के मामूली होने का सुबूत मिल जाता है तो वो मिलते वक्त की तकल्लुफ़ वाली खुशी से भी इन्कार कर देता है।  


अब ये जान पड़ता होगा कि ये निहाँ जुल्म है और बचकानी बात है। सुनो ना! तो एक काम करो! इसे यहीं पढ़ना छोड़ दो! क्यूंकि मुझे फिर समझ नहीं सकता कि फिर तुम इश्क़ समझे भी हो। ये कैसी शर्त है कि इश्क़ को भी एक रिवायत की तर्ज़ पर करना पड़ेगा। इश्क़ मेरे या जौन के नज़दीक इस मुकाम पर तहजीब और अदब की चौहद्दी में कुटिया बनाकर रहने का नाम नहीं है। जो आज के हर शुरुआती आशिक के सपनों के घर बसाने तक का सफर करने से आगे की उड़ान नहीं कर पाता और फिर यही पाकर सोचता है कि वाह क्या पा लिया और फिर अपने इश्क़ को अपने हाथों गला घोंटकर मर जाने को मजबूर कर देता है। जौन की वो ग़ज़ल…


सीना दहक रहा हो तो क्या चुप रहे कोई
क्यूँ चीख़ चीख़ कर न गला छील ले कोई

साबित हुआ सुकून-ए-दिल-ओ-जाँ कहीं नहीं
रिश्तों में ढूँढता है तो ढूँडा करे कोई

तर्क-ए-तअल्लुक़ात कोई मसअला नहीं
ये तो वो रास्ता है कि बस चल पड़े कोई

दीवार जानता था जिसे मैं वो धूल थी
अब मुझ को ए'तिमाद की दावत न दे कोई

मैं ख़ुद ये चाहता हूँ कि हालात हूँ ख़राब
मेरे ख़िलाफ़ ज़हर उगलता फिरे कोई

ऐ शख़्स अब तो मुझ को सभी कुछ क़ुबूल है
ये भी क़ुबूल है कि तुझे छीन ले कोई

हाँ ठीक है मैं अपनी अना का मरीज़ हूँ
आख़िर मिरे मिज़ाज में क्यूँ दख़्ल दे कोई

इक शख़्स कर रहा है अभी तक वफ़ा का ज़िक्र
काश उस ज़बाँ-दराज़ का मुँह नोच ले कोई
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Jaun Elia

बस तो फिर हमारा आशिक भी ताल्लुक़ात के इस अलगाव को कुबूल कर लेता है। लेकिन यहाँ भी उसके अंदर का गुस्सा और कमतरी का डर नहीं जाता और वो एक नज़्म कहता है जिसमें वो अपनी महबूबा को सज़ा सुना देता है... 



शायद इससे पहले इतना गुस्सा उसने कभी न किया हो। वो तंज़ करता है कि अगर मैं तुम्हें मोहब्बत के उस एहसास जिसमें बदन ओ जाँ एक अजीब सुख से सरशार रहते है, उस एहसास से दो चार न कर सका, तुझे अपने साथ का सुकून ग़म के पलों में न दे सका तो फिर क्यूँ  तुम अभी तक मुझ ज़हर को अमृत माने बैठी हो, तुम्हें सुकरात बनने की कोई ज़रूरत नहीं। वो हताशा के समंदर में डूबकर कहता है कि जब वो सारे तमन्नाओं के चराग़ जो उसने तुम्हारे सबब जलाए थे और वो डरता था कि कहीं दुनिया की हवा उसे बुझा न दे, वो चराग़ हवा के निकले! यानी तुम भी दुनिया निकली! तो ये सब कुछ एक भरम के सिवा कुछ न था। तुममें कोई खास बात नहीं थी। और आखिरी में वो ऐलान करता है जिसमें वो उस बेवफा से उसे चाहने का हक़ छीने लेता है और एक ड्रामाई तर्ज़ पर उसे कराहने तक से मरहूम कर देता है। 


और फिर इसके बाद हर इक शाम शाम ए वीराँ और हर एक शब शब ए हिज्र होती जाती है। इन दो पहरों में तो फिर भी आशिक की इज़्ज़त है पर दोपहर तो मानो पागलपन का पहर होता है। जौन भी शेर लिखता है ... 



ऐसी रायगानी!? इस कदर हर एहसास की कमी! कि बस एक फिज़ूल का काम किये जाना और दोपहरें बिताना। सुबह तो मानो अपनी रौशनी के हर कतरे में ईसा की सलीबें टाँके आप की आंखों में कीलें गाड़ने चली आती है। चीखने को दिल करता है। फिर इक दिन ये suffering खत्म हो जाती है |


इस मुकाम पर जौन एक ग़ज़ल कहता है...



तो क्या वो अबतक इंतज़ार कर रहा था? हाँ! वो अभी तक इंतज़ार में था कि शायद एक दिन उसका महबूब घुटनों पर आकर अपनी गलतियों की माफ़ी मांगेगा! पर ऐसा कुछ न हुआ। ये वो मुकाम था जब यादें भी साथ छोड़ गयीं। 


ऐसे मौके पर आशिक सोचता है क्या मुझे सच में किसी शख्स की ज़रूरत है? तो उसे जवाब आता है कि क्या ज़रूरत के लिए इश्क़ किया था? ये तो बस हो गया था। जैसे चलते चलते बस गिर जाया जाता है। फ्रेंच भाषा से ही तो अंग्रेजी में ये जुमला आया है... To fall in love. 


जौन या ऐसा कोई भी शख्स बिना fall के इश्क़ का तसव्वुर नहीं कर सकता! आज तो जो सिलसिलेवार ढ़ग से गिरने के लिए भी सीन रचे जाते हैं तो लगता है कि आशिक इश्क़ नहीं बल्कि इश्क़ की method acting कर रहे हैं। 


जौन की मोहब्बत hypocrisy का काइल नहीं है और जहाँ वो खुद hypocritical है वहाँ वो इस पर शेर कहकर दुनिया को बता देना चाहता है कि देखो मै झूठा हूँ। 



आज ये महज़ लफ्ज़ है के जिसमें जौन बड़ी ईमानदारी से कहता नज़र आता है कि जिस इश्क़ को इश्क़ तसव्वुर करके मेरे पास आ रही ह मत आओ, शायद मैं अपनी जिस्मानी कमज़ोरी के सबब तुमको उस इश्क़ की एक बून्द भी न चखा सकूँ! तो कहीं रूह को ही इश्क़ का फरेब देने के लिए दोषी ठहराता है और इसके पीछे इक जिस्मानी दुश्मनी का ज़िक्र करता है। आखिरी शेर में तो खुले आम जौन कह रहा है कि उसे मोहब्बत नहीं हुई, ज़ाहिर है नहीं हुई! क्यूंकि वो तो अपने ही बकौल बस परछाईयों पर रंग गिराता रहा है। पर यहाँ भी वो अपनी अच्छाई बयाँ करता है कि उसने कितना बड़ा एहसान किया है सबको यकीन दिलाकर। ये दरअसल एहसान फरामोशी है। जौन पर लआनत और उसके इश्क़ पर भी। 


तो फिर इश्क़ यही बदसूरती है? और जौन जो कि मंतक और भाषा का इतना बड़ा जानकार है, इश्क़ नाम का फ्राॅड करता चला आ रहा है? पाँच भाषाओं का जानकार, फलसफे को ज़ेहन के अंदरून तक जीने वाला इतना बड़ा आलिम एक मक्कार? पूरी तरीके से नहीं। जौन के नोट्स के वो पहले पन्ने मैंने अभी तक आपसे छिपाकर रक्खे जिनमें वो अपनी महबूबा को इक शहज़ादी की सी इज़्ज़त बख्शता नज़र आता है। 


तो चलिए चलें जौन की जेंटलमैन शायरी की तरफ़.... 



यहाँ मुझे जौन अफ़लातूनी इश्क़ का इस्तियारा मालूम हो रहा है। अपने इस मोहब्बत के एहसास को महज़ बदहवासी कह रहा है। क्यों? क्योंकि उससे अपनी महबूबा के कपड़े का बंद खुला नहीं। शायद इस छोटे और अदने से वाकयात ने जौन को समझा दिया कि आम इश्क़ की ज़रूरतों को उसका इश्क़ पूरा नहीं कर सकता और फिर उसने इज़हार में बता दिया कि मेरी मोहब्बत ही खराब है कि मैं दुनिया के definition पर खरा न उतर सका। 




तसव्वुर वाली महबूबा को भी लिबास पहनाना ! ये कैसा आशिक है जो महबूब के इस्मत की उससे ज़्यादा कद्र करता हो! जौन की दुनिया में चांद भी अपने आपको बादल की चादर में ढक लेता है जब वो कपड़े बदल रही होती है। 


जौन का ये कित़आत... 



अब आपको समझ आ रहा होगा कि मैं इस शख्स की तब वकालत क्यों कर रहा था जब वो अपने महबूब पर ज़ुल्म पर ज़ुल्म किए जा रहा था। मैं कहीं न कहीं इसे ये हक़ देने का हामी हूँ। क्यों? यूँ कि जो शख्स अपने महबूब की यादों को, खुतूत और खुशबू तक को गिनकर रखता है जैसे वो उसकी ज़िन्दगी की कमाई हो तो फिर क्या तुम्हें वो महबूब जो इसपर भी अलग होना चाहता है, एक सरमायादार या वो फैक्ट्री का मालिक नहीं नज़र आता जो मज़दूर के इस कदर मेहनतकश होने के बावजूद उसे नौकरी से निकाल रहा है। मुझे तो यही नज़र आता है! 


और तारिफ़ें भी देखिए.... 



मतलब आप किसी शख्स की सुंदरता में उसकी तुलना किससे करेंगे? फूल से, किताब से या कहें किसी और खुबसूरत शै से। 


जौन अपने महबूब को खुद से भी खूबसूरत अहिंसा रहा है। इस कदर तारीफ़? कि खुदा की बनाई उसी शै को को उसी शै से बेहतर कह देना। ये जौन ही कह सकता है! 


खुशबू के ख्वाब की खुशबू क्या होती है ये तो मेरे imagination से बाहर की बात है लेकिन इस बात में जो बेमुरव्वती है जो ज़ाहिर है। 


न जाने क्या दौलत मानता है उस लड़की को की ख्वाब में उसे पाता है। प्यार में अपने जीते जागते प्यार को कह देना कि तुम ज़रूर ख्वाब हो! हसरत हो! हक़ीक़त तो ऐसी नहीं होती! ये जौन की करामत है। 


चाहे ये अशआर लें....




गुलाब भी जिसकी खुशबू को तरसते हों वो कैसी होगी? अब हम जानते हैं वो आम सी ही है पर सोचिए कि क्या जौन इस तसव्वुर के बात आम शै बर्दाश्त करेगा? मुझे नहीं लगता। 



रूठने और मनाने की ऐसी अठखेलियाँ के जहाँ रिश्ता खत्म करने तक बात आ गई और फिर महबूब के इक बार गले में हाथ डालते ही जो शख्स पिघल जाए तो आपको क्या लगता है कि क्या वो शख्स जब नफ़रत करेगा तो क्या सतही नफ़रत करेगा? वो मुंह नोंच लेगा अपनी महबूबा का वहशत में।



रिश्ता कब का खत्म! वो शायद इन्हें भूल गई है और ये हज़रत उनसे मुरव्वत में के लिए रूठे बैठे हैं। रिश्ते को इस कदर निभाते रहना क्या पागलपन है? मेरे नज़दीक यही इश्क़ है। 


या कि ये शेर.... 



इतना सहनशील और मुहज्ज़ब शख्स? जौन एलिया! यकीन नहीं होता पर ये सच है! झगड़ा तक नहीं करना चाहता। 


इसके fifty shades हैं और हर shade एक गहरा shade है। मोहब्बत भी ऐसा ही इक shade है इसका। 


रूकने को जी भी नहीं कर रहा और ऐसा भी नहीं है कि जौन के नोट्स यहीं खत्म हो गए। पर अब इस अफसाने को खुबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा जान पड़ रहा है। अगर मुकम्मल ट्यूशन पढ़नी है तो जौन को पढ़िए। मेरा क्या है मैं तो बस आपका इसी कोचिंग में पढ़ने वाला सीनियर हूँ! 


जौन का ये शेर तुम तक छोड़े जा रहा हूँ... 



ये होमवर्क है आपका! इस पर मज़ीद सोचिए जहाँ तक सोच सकें!