आदाब अज़ीज़ों!
आज का ब्लॉग काफ़ी इंटरेस्टिंग होने वाला है क्योंकि आज जिस बहर पर हम क्लास करेंगे उसमें nomenclature का part बहुत कम है साथ ही साथ वक़्फ़ा (यति/stoppage) और शिकस्त-ए-नारवा जैसी चीज़ों को जानेंगे जो इस बहर में लिखते समय ज़रूरी हैं।
ये एक मशहूर गाने की कुछ लाइनें हैं उम्मीद है ये लाइनें आप लोगों ने कभी न कभी कहीं न कहीं सुनी होंगी!
ये इश्क़ तुम न करना है ये रोग ही लगाए
ये दफ़्न ख़ुद करे है फिर सोग भी मनाए
और आशिक़ों के दिल में ये आस ही जगाए
फिर आस को बुझाके ये आग भी लगाए
(औपचारिक रूप से तक़ती'अ ज़रूर करें)
नहीं तो film 'दोस्त का एक नग़मा' में किशोर दा का ये गाना ज़रूर सुना होगा।
गाड़ी बुला रही है, सीटी बजा रही है
चलना ही ज़िंदगी है, चलती ही जा रही है
(इसकी भी तक़ती'अ ज़रूर करें)
इसके दो फ़ायदे हैं:-
(i) आपको गर इनकी लय पता है तो आप भी अपने लिखे हुए को इन्हीं तरन्नुमों में पढ़ सकते हैं
(ii) इसकी तक़ती'अ आपने की है तो आपको बहर का idea ज़रूर मिल गया होगा क्योंकि आज इसी बहर पर हमारा blog तैयार किया गया है।
जी! आपने ऊपर लिखी गई lines की बहुत सही तक़ती'अ की है:-
221/2122/221/2122
मफ़ऊल फ़ाइलातुन मफ़ऊल फ़ाइलातुन
आगे बढ़ते हुए ये बताता चलूँ कि इसका नाम बहर-ए-मुज़ार'अ मुसम्मन अख़रब है।
पिछले ब्लॉग की तरह ही ये एक मुरक्कब मुज़ाहिफ़ बहर है। और इसे भी बहर-ए-मुज़ारे'अ मुसम्मन सालिम (1222/2122/1222/2122) में फेर बदल करके बनाया गया है।
नामकरण:-
हमने 'मुज़ार'अ मुसम्मन सालिम' के पहले एवं तीसरे रुक्न मफ़ाइलुन (1222) को ज़िहाफ़ के एक प्रकार ख़र्ब का इस्तेमाल करके फ़ाईलु (221) में बदल दिया जिसे हमने मफ़ऊल (221) से एक्सचेंज कर लिया और बदले हुए अरकान अख़रब कहलाए।
इस तरह निम्नलिखित बहर प्राप्त होती है जिसका नाम बहर-ए-मुज़ारे'अ मुसम्मन अख़रब है:-
मफ़ऊल फ़ाइलातुन मफ़ऊल फ़ाइलातुन
(221/2122//221/2122)
अगर आप थोड़ा सा ग़ौर करेंगे तो दूसरे रुक्न के बाद double slash नज़र आ रहा होगा। क्योंकि वहाँ पर अरूज़ी वक़्फ़ा (यति/ठहराव/rhythmic stoppage) है, सामान्य रूप से वहाँ comma लगा है।
अरूज़ी वक़्फ़ा :-
आसान शब्दों में कहा जाए तो ये दो अरकान के बाद का एक ठहराव है जहाँ comma लगाना लाज़िम है। इस तरह एक मिस्रा दो अलग टुकड़ों में बँट जाता है और एक शेर चार अलग टुकड़ों में बाँट कर लिखा जाता है।
सबसे पहले 'हसरत मोहानी' ने शायरी के इस वक़्फ़े से हमें अवगत कराया। हालांकि हमारे यहाँ मीर-ओ-ग़ालिब से पहले भी शायर वक़्फ़ा निभाते हुए शेर लिखने के आदी थे।
वक़्फ़ा उन बहरों में होती हैं जिनमें ज़िहाफ़ लगने के बाद अरकान दोहराते हुए नज़र आते हैं। जैसे कि:-
(i) 221/1222//221/1222
(ii) 212/1222//212/1222
(iii) 221/2122//221/2122
(iv) 2112/1212//2112/1212
(v) 1121/2122//1121/2122
इन सभी बहरों में दो अरकान के बाद एक comma होता है।
तीसरे बहर पर लिखा गया एक शेर अर्ज़ करता हूँ।
Manohar Shimpi
अदनान भाई, बहोत लाजबाब आर्टिकल, यह आर्टिकल पढ़ने से बहुत अच्छी जानकारी मिली।
आपका बहोत बहोत शुक्रिया।
🌹🙏🌹