नमस्कार साथियों
मैं उम्मीद करता हूँ कि आप सभी ने Poetistic पर मौजूद अभी तक के सभी blog पढ़कर अपने इल्म-ओ-फ़न में काफ़ी इज़ाफ़ा कर लिया होगा।
हमने अपने Blog बहर में शायरी में आपको 32 बहरों की एक फ़ेहरिस्त दी थी और उसके अगले Blog ख़याल से ग़ज़ल तक में यह भी बताया था कि इन्हें 32 पर लाकर क्यों रोक दिया गया है।
इस Blog Series में हम 32 बहरों में से किसी एक बहर को Detail में जानेंगे और आगे आने वाले Blog में इस फ़ेहरिस्त की सभी बहरों पर एक-एक करके चर्चा करेंगे।
चलिए शुरू करते हैं -
आज के Blog में हम जिस बहर को detail में जानेंगे उसका नाम है "हज़ज मुसम्मन सालिम"। डरिए मत! ये नाम याद रखने की आपको ज़रूरत नहीं है। अगर आप उर्दू ग़ज़लें लिखते हैं तो मैं पूरे भरोसे के साथ कह सकता हूँ कि आप सभी ने इस बहर में ग़ज़ल व शेर ज़रूर लिखे होंगे।
चलिए इसे और सरल करते हुए इस बहर का रुक्न रूप देखते हैं।
1222-1222-1222-1222
मफ़ाईलुन- मफ़ाईलुन- मफ़ाईलुन- मफ़ाईलुन
यह बहर सात हर्फ़ी अरकान से बनी है। इस बहर की मूल रुक्न 1222 यानी मफ़ाईलुन है जिसे 'अरूज़-शास्त्र' में हज़ज कहते हैं।
चूँकि इसमें दोनों मिसरों को मिलाकर कुल रुक्न की संख्या आठ हैं इसलिए इसे मुसम्मन अर्थात आठ घटक वाली और सभी अरकान में से किसी में कोई परिवर्तन नहीं किया है तो इसे हम सालिम (सलामत) कहते हैं।
इसलिए इस बहर का नाम बनता है।
बहर-ए-हज़ज मुसम्मन सालिम
यह बहर रुक्न की संख्या अनुसार सबसे लंबी सालिम बहरों में से एक है। मुझे पूरी उम्मीद है कि अब आप सभी ने इस बहर को पहचान लिया होगा।
आइए अब इस बहर में लिखी गई एक ग़ज़ल देखते हैं।
pankaj pundir
तेरी आँखों के दरिया का उतरना भी ज़रूरी था, इस बहर का एक और गीत. मुझे तो, ग़ज़ल "हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी " के कुछ शेर बहुत अच्छे लगे इस धुन में.