आज की Class में हम बे-बहर ख़यालों को बहर के ढाँचे में ढालना सीखेंगे। ख़याल वो कच्ची मिट्टी है जिसे बहर नाम के ढाँचे में ढालकर शे'र नाम की ईंटें बनाई जाती है और इन्हीं ईंटों से ग़ज़ल जैसे ख़ूबसूरत आशियानें बनते हैं। इसी के साथ हम ग़ज़ल में मिलने वाली छूट यानी सहूलियत की भी बात करेंगे।


चलिए शुरू करते हैं -


बहर से आपकी मुलाक़ात हो चुकी है। मैंने 32 बहरों की फ़ेहरिस्त पिछले Blog ( बहर में शायरी ) में आपको दी है। इन बहरों में आप अपने अश'आर कह/लिख सकते हैं। ये फ़ेहरिस्त बहुत बड़ी हो सकती थी लेकिन इसे 32 पर लाकर रोक दिया गया। इसका कारण है कि ये 32 बहरें ही हिन्दी लिपि में उर्दू ग़ज़लें कहने वालों के लिए हर-दिल-अज़ीज़ है और काफ़ी है। इसके अलावा सैकड़ों बहरें हैं लेकिन उनका इस्तेमाल अरबी/फ़ारसी शायरी में ही देखने को मिलता है। अगर आप इन बहरों के अलावा किसी ग़ैर-मुस्ता'मल बहर में शायरी करना चाहते हैं तो आपको "बहर कैसे बनती है" ये समझना चाहिए।


लेकिन..


आप आम क्यों नहीं खाते?


गुठलियाँ गिनने से क्या मिलेगा?


और रही बात सीखने की तो आप पहले एक चीज़ (बहर में शे'र कहना/लिखना) सीख लीजिए फिर इससे आगे कुछ सोचिएगा। मैं एक मुफ़्त की सलाह देता हूँ - जब तक आप इन 32 बहर में कम से कम एक शे'र हर बहर में नहीं कह/लिख लेते तब तक आपको बहर कैसे बनी ये जानने की सोचना ही नहीं चाहिए।


चलिए मुद्दे पर आते हैं और ख़यालों को बहर में ढालना सीखते हैं। अगर आपकी Practice हो चुकी है तो आप सीधे ही बहर में लिख सकते हैं लेकिन अभी आपने शुरू ही किया है तो मैं आपको कुछ s बता देता हूँ जिससे आप ग़ज़ल लिखते समय कहीं अटकेंगे नहीं।


Step 1 ) ख़याल लिखना


सबसे पहले अपने ख़यालों को बे-बहर (बिना बहर) के अश'आर में रदीफ़ और क़ाफ़िया के साथ लिख लीजिए। इसी के साथ आपको तय करना है रदीफ़ और क़ाफ़िया में कोई दोष नहीं हो, यदि दोष हो तो पहले उससे निपट लें ( रदीफ़-क़ाफ़िया दोष और निवारण ) फिर आगे बढ़ें। Example के लिए एक ख़याल देखिए -


मेरी आँख में थोड़ी सी नमी रह गई


तेरे बिना ऐसा लगा, कुछ कमी रह गई


सबसे पहले रदीफ़ और क़ाफ़िया देखेंगे -


•‌ रदीफ़ - रह गई


• क़ाफ़िया - नमी और कमी


यहाँ तक सब ठीक है। अगली Step पर चलते हैं -


Step 2 ) सही बहर चुनना


क़ाफ़िया और रदीफ़ को एक साथ लिखकर उनका वज़्न पता करना है। उसी वज़्न से हम तय करेंगे कि हमें 32 में से कौनसी बहर लेनी चाहिए।


नमी + रह गई


12 + 212


फ़ेहरिस्त में जितनी बहर के आखिर में 12212 आता है वो बहर हम ले सकते हैं। फ़ेहरिस्त में देखें तो क्र. 9, 10 और 12 की बहर इस रदीफ़ और क़ाफ़िया के साथ मेल खाती है। इन तीनों बहरों में से जो हम चाहें ले सकते हैं। Practice से आपको मालूम पड़ने लग जाएगा इन तीनों में से आपके लिए Best कौनसी है। अभी हम क्र. 12 की बहर लेंगे। आपको बहर का क्रमांक याद नहीं रखना है और ना ही आपको बहर याद करनी है। आप बहर की फ़ेहरिस्त को अपने Notebook में लिख सकते हैं। जब ज़रूरत हो तो उसमें ही देख लीजिएगा।


बहर - 212 212 212 212


Step 3) बहर में ख़याल को ढालना


जैसा कि हमें पहले से मालूम है कि आखिरी के 12212 की जगह रदीफ़ और क़ाफ़िया आने वाले हैं तो पहले ही हम उन्हें उस जगह लिख देते हैं।


212 212 2 नमी रह गई


अब हमारे पास 212 212 2 की जगह खाली है। इस जगह हमें ख़याल को देखते हुए ऐसे शब्द भरने हैं जो बहर में वज़्न के हिसाब से सही हो। इसे "Fill in the blanks" की तरह Treat कर सकते हैं। सबसे पहले बड़े और ज़रूरी शब्द भरने चाहिए जिसके बाद भर्ती के शब्द की बारी आएगी।


भर्ती के शब्द वो शब्द हैं जो सिर्फ़ ख़याल को बड़ा करने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं, इनके होने या ना होने से ज़्यादा फ़र्क नहीं पड़ता।


Fill in the blanks वाले Step में आपका सबसे ज्यादा वक़्त लगेगा और यही Challenging भी है। इसमें आप थोड़ा वक़्त और मेहनत लगाएंगे तो ये भी आपको आसान लगने लगेगा।


चलिए इस बार Fill in the blanks का काम मैं ही कर देता हूँ -


आँख में / इक अजब / सी नमी / रह गई


212 / 212 / 212 / 212


ये लीजिए सिर्फ़ 3 आसान Steps में हमनें बहर के साथ एक मिसरा लिख लिया। हर मिसरे के लिए यही Steps दोहराए जाएंगे। इन्हीं Steps को Follow करके इसी शे'र का अगला मिसरा भी मैंने लिख दिया है। ये देखिए -


तू न था / तो लगा / कुछ कमी / रह गई


212 / 212 / 212 / 212


ये देखिए बातों ही बातों में एक शे'र हो गया -


6489


ये शे'र बिना छूट लिए लिखा गया है। बिना छूट लिए लिखी शायरी ही Best है लेकिन ऐसा हर बार लिख पाना थोड़ा मुश्किल होता है। इस सफ़र को थोड़ा आसान बनाने के लिए हमें कुछ छूट मिलती है। छूट लेने के भी कुछ नियम होते हैं, जिनके बारे में हम जानेंगे।


मात्रा गिराने की छूट/नियम


इस छूट को बहुत Detail में समझाया जा सकता है लेकिन ऐसा करने से ये पेचीदा हो सकता है। मैं आपको आसान भाषा में समझाने की कोशिश करता हूँ-


किसी भी शब्द की आखिरी मात्रा अगर आ, ई, ऊ, ए, ओ की हो तो उस आखिरी अक्षर का वज़्न 2 की जगह 1 गिन सकते हैं। इसे मात्रा गिराने का नियम कहते हैं।


नोट = ऐ, औ तथा अं की मात्रा नहीं गिराई जा सकती।


लेकिन अपवाद की वजह से "है", "हैं" तथा "मैं" इन तीन शब्दों की मात्रा गिराई जा सकती है।


Example से समझिए -


हमारे 122 को 121 गिना जा सकता है।


निकला 22 को 21 गिना जा सकता है।


सहेली 122 को 121 गिना जा सकता है।


अकेले 122 को 121 गिना जा सकता है।


मात्रा गिराने का मतलब सिर्फ़ तब समझा जा सकता है जब ग़ज़ल लिखने के बजाय कही जाए। अभी तक मैंने लिखने/कहने दोनों को निभाया है लेकिन अब मैं आपको इसका कारण बता देता हूँ - ग़ज़ल लिखने के बजाय कहने और सुनने की विधा है। ग़ज़ल का व्याकरण उच्चारण से ही समझा जा सकता है। आप ग़ज़ल को सुनकर पता कर पाएंगे कि कहाँ मात्रा गिराई गई है क्योंकि जब किसी शब्द की मात्रा गिराई जाती है तो उस शब्द के उच्चारण में आवाज़ को दबाकर पढ़ा जाएगा।


याद रखिए


मात्रा गिराना सिर्फ़ एक छूट है, यह कोई नियम नहीं है।


इसका इस्तेमाल कम से कम यानी ज़रूरत पड़ने पर ही किया जाना चाहिए।


मात्रा गिराने से ही जुड़ी कुछ ख़ास बातों में पहली बात है कि किसी इंसान या जगह के नाम की मात्रा नहीं गिरा सकते।


दूसरी बात ये कि मात्रा गिराने की छूट है लेकिन मात्रा उठाने की कोई छूट नहीं है यानी 1 वज़्न वाले शब्दों की मात्रा उठाकर 2 नहीं की जा सकती।


किसी भी शब्द की सिर्फ़ आखिरी मात्रा को ही गिराया जा सकता है, मात्रा गिराने पर शब्द की आखिरी मात्रा के अलावा दूसरी मात्राओं के वज़्न में कोई बदलाव नहीं आता।


कुछ शब्दों में अपवाद है जिसकी वजह से शब्द के वज़्न में बदलाव किया जा सकता है लेकिन ये मात्रा गिराने के नियम से अलग है।


अपवाद वाले शब्द - 


1) मेरा/मेरी/मेरे, तेरा/तेरी/तेरे, कोई- इन शब्दों के पहले अक्षर को भी सहूलियत से 1 गिना जा सकता है। यानी "मेरा" का वज़्न 12 भी गिना जा सकता है। साथ ही इसमें मात्रा गिराने का नियम लगा दें तो इसे 11 भी गिना जा सकता है।


2) पर - इसे "पे" लिख सकते हैं। जिसके बाद इसमें मात्रा गिराने की छूट लगा सकते हैं और वज़्न 1 गिन सकते हैं।


3) और - इसका वज़्न 21 होते हुए भी 2 गिन सकते हैं। ये मात्रा गिराने की छूट से नहीं हुआ है। ध्यान रखें इसे अपवाद की वजह से 2 गिनने के बाद इसमें मात्रा गिराने का नियम लगाकर 1 नहीं गिन सकते।


बहर में मिलने वाली छूट -


1) +1 करने की छूट। किसी भी बहर के किसी भी मिसरे में आखिर में +1 जोड़ सकते हैं जिसके बाद अन्य मिसरों में +1 करना ज़रुरी नहीं होता।


एक Example शे'र देखिए -


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ज़रा सा हा / थ लगने से / हो जाते ज़ख़् / म सारे ठी / क


1222 / 1222 / 1222 / 1222 / +1


तेरे हाथों / में जादू है / तू चारासा / ज़ थोड़ी है


1222 / 1222 / 1222 / 1222


2) जिन सभी बहरों के आखिरी रुक्न 22 हो उन्हें किसी भी मिसरे में 112 लिया जा सकता है। 


3) दो ख़ास बहरें हैं जिनके पहले रुक्न को किसी भी मिसरे में 2122 की बजाय 1122 भी लिया जा सकता है। वे दोनों बहरें हैं -


• 2122 / 1212 / 22


• 2122 / 1122 / 1122 / 22


ग़ज़ल में मिलने वाली लगभग सभी छूटों के बारे में मैंने आपको बता दिया है। शायद ही अब कोई छूट बची होगी जिसका ज़िक्र मैंने नहीं किया हो। आखिर में एक बार फिर से ये बात दोहरा देता हूँ कि किसी भी छूट का इस्तेमाल छूट की तरह ही करें। कोशिश तो यही होनी चाहिए कि बिना छूट लिए ही लिखें।


उम्मीद है कि आप बताए गए Steps से आसानी से बहर में शायरी लिख पाएंगे। इस Blog को मैं वीनस केसरी जी के कुछ शब्द लिखते हुए ख़त्म करना चाहूँगा -


"ग़ज़ल जैसी और कोई दूसरी विधा नहीं है। यह जितनी आकर्षक है उतनी ही कठिन। ग़ज़ल की बारीकियों को समझते समझते उम्र गुज़र जाती है, फिर भी ऐसा दावा नहीं किया जा सकता कि उम्रभर अभ्यास करने के बाद अच्छी ग़ज़ल कहनी आ जाएगी। कुछ ख़ुदादाद‌ नेमत और बाकी अभ्यास से बात बन तो जाती है मगर जो उम्र भर शाइरी कर रहा है वो भी ऐसा कोई दावा नहीं कर सकता कि उसकी ग़ज़लों में कोई कमी नहीं मिलेगी।" ~ वीनस केसरी


शुक्रिया!