आज की Class में हम बात करने वाले हैं एक ऐसी विशेष स्थिति के बारे में जिसकी मदद से हम अपने ख़यालों को और आसानी के साथ ख़ूबसूरती से ज़ाहिर कर सकते हैं।
इस विशेष स्तिथि को हम उर्दू में अलिफ़ वस्ल के नाम से जानते हैं।
इसके नाम को लेकर परेशान होने की ज़रूरत बिल्कुल भी नहीं है, सुनने या देखने में ये नाम जितना पेचीदा लग रहा है ये उतना ही आसान है, आप अगर इस Blog को पढ़ रहे हैं तो ये बात ज़ाहिर है कि आप हम जैसे कुछ लोगों की फ़ेहरिस्त में शामिल हैं जो कुछ शेर कहने की कोशिश में लगे हुए हैं, और अगर आप शेर कहने की इस कोशिश में लगे हुए हैं तो ये भी ज़ाहिर है कि आपने हिज्र और वस्ल को लेकर कोई न कोई शेर ज़रूर सुना होगा। यहाँ भी वस्ल का मतलब मिलाप है।
अलिफ़ वस्ल का मतलब, अलिफ़ का मिलाप।
अब क्योंकि हम इसे हिंदी से समझने की कोशिश कर रहे हैं तो इसे आसान बनाते हैं, जो बात आपको याद रखनी है वो यह है कि इस स्तिथि में जब भी कोई शब्द व्यंजन पे ख़त्म होता है यानी जिस पर कोई मात्रा नहीं हो और उसके बाद के शब्द का पहला अक्षर कोई स्वर हो तो उच्चारण अनुसार पहले शब्द के आख़री व्यंजन और दूसरे शब्द के पहले स्वर का मिलाप हो जाता है।
मिसाल के तौर पर हम एक शब्द लेते हैं "याद" जिसका वज़्न होता है 21 और यह एक व्यंजन "द" पर ख़त्म हो रहा है अब हम इसके आगे एक स्वर "आ" ले लेते हैं जिसका वज़्न है 2 अगर हम इसे इस तरह पढ़ते हैं "याद आ" तो इसका वज़्न होगा 21 2
अब इस स्तिथि के मुताबिक़ हम पहले शब्द के व्यंजन को अगले स्वर से जोड़ कर देखते हैं, यानी यह कुछ ऐसा रूप आयगा "याद+आ= यादा" और अब इसका वज़्न हो जाएगा 22
मगर एक बात याद रखिए कि यह सिर्फ़ उच्चारण में ऐसे पढ़ा जाएगा लिखते वक्त हम अभी भी इसे "याद आ" ऐसे ही लिखेंगे।
उम्मीद है आप लोग यहाँ तक मेरे साथ बने हुए हैं, और यहाँ तक आप लोगों को सब समझ आ चुका है।
अब हम कुछ शेर देखते हैं जिन से आपको समझने में और आसानी होगी।
मिसाल के तौर पर ग़ालिब की एक मशहूर-ए-ज़माना ग़ज़ल का एक शेर लेते हैं:
Nirbhay Raj
बहुत खूब