अभी तक आप सभी ने यह बहुत अच्छे से समझ लिया है कि किस तरह एक ख़याल को एक शेर की शक्ल दी जाती है।


पिछले Blog ( बहर में शायरी ) में आप लोगों को यह चीज़ बख़ूबी समझ आ चुकी है कि बहर क्या है और बहर में शेर किस तरह कहे जाते हैं।


अब हम आगे बढ़ते हैं और एक ऐसी बहर के बारे में जानने की कोशिश करते हैं जिसमें अरूज़ के नियम न होने के बावजूद इसे अपवाद के तौर पर ही सही लेकिन अरूज़ की बहरों के साथ रखा गया है, यह मात्रिक बहर कहलाती है।


वैसे तो यह सत्रहवीं शताब्दी से चली आ रही है लेकिन इसका सब से ज़्यादा इस्तेमाल अठारवीं शताब्दी में उर्दू के उस्ताद शाइर मीर ने किया है, उन्होंने इस बहर में सैकड़ों ग़ज़लें कहीं हैं इसलिए हम इसे बहर-ए-मीर के नाम से भी जानते हैं।


पिछली जितनी बहरें हम ने देखीं उन सब में मतला में जो बहर इस्तेमाल की जाती है वही आगे हर शेर में इस्तेमाल होती है लेकिन ऐसा इस बहर के साथ हो ऐसा ज़रूरी नहीं है। शेर के दोनों मिसरों‌ का वज़्न अलग होने के बावजूद शे'र बा-बहर हो सकता है।


इस बहर में हर मिसरे में अलग अर्कान इस्तेमाल हो सकते हैं बस शर्त है कि सभी मिसरों की कुल मात्राएँ बराबर हो। साथ ही एक ख़ास शर्त है - लय की। बिना लय के इस बहर का अस्तित्व नहीं है।


मिसाल के तौर पर मीर का ही एक शेर लेते हैं-


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साफ़ ज़ाहिर हो रहा है कि दोनों मिसरों में अलग-अलग तरह का मात्रा क्रम है, लेकिन शेर पढ़ते वक्त उसकी लय सही है और ये शेर बे-बहर यानी बिना बहर का नहीं लगता।


आइए अब इसकी तक्ती'अ देखते हैं -


उल्टी /हो गईं/सब तद / बीरें/ कुछ न द /वा ने /काम कि/या


2 2 / 2 2 /  22 / 22 / 211   / 2 2 /   211  / 2


देखा /इस बी /मारी-ए-/दिल ने/आख़िर/ काम त/माम कि/या


2 2/   22  /  2 1 1/   22  /   22  /  21  1/ 21 1  /2


आप देखेंगे की कुछ जगह जहाँ 2 के स्थान पर 11 लिया गया है, अगर ऐसा नहीं करते तो ये सिर्फ़ 2 के क्रम का दोहराती हुई बहर मालूम होती। लेकिन इस बहर की सबसे ख़ास बात यही है कि इस में हर दूसरे वाले 2 की जगह 11 कर सकते हैं यानी हर सम की जगह 11 कर सकते हैं सिवाए आख़िरी वाले 2 के और चाहें तो हर मिसरे में इसका मात्रा क्रम बदल सकते हैं।


और इसी तरह से 22 की जगह 121 भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इसे आप एक प्रकार की छूट कह सकते हैं। इस छूट का इस्तेमाल कहाँ करना चाहिए और कहाँ नहीं इसके बारे में पुख़्ता जानकारी कहीं नहीं मिलती, और मिलना मुश्किल भी है क्योंकि इस बहर की एकमात्र शर्त है लय। यदि लय है तो इस बहर में सब जायज़ है। शेर का लय में होने या न होने का अंदाज़ा आप पढ़कर लगा सकते हैं। उदाहरण देखिए -


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तक्ती'अ करें -


जाने / क्या कुछ / कर बै / ठा है


22 /    22    /  22  /22 


बहुत दि / नों  से / घर बै / ठा है


121 /    22    /  22  /22


वो मधु / मास लि / खे भी / कैसे


22 /    211   /  22  /22


शाखों / पर पत / झर बै / ठा है


22 /    22    /  22  /22


आप देखेंगे कि यहाँ 22 को 121 और 211 के रूप में इस्तेमाल किया गया है लेकिन लय कहीं भी नहीं टूट रही। और साथ ही कुल मात्रा का क्रम 22×4 के रूप में दिख रहा है।


मात्रिक बहर के इस क्रम को आसानी से समझने के लिए हम ये कह सकते हैं कि यह बहर 22 के pattern पर है यानी 22 के दोहराव से इसके कई अरकान बन सकते हैं जैसे-


22 22 22 22


22 22 22 22 2


22 22 22 22 22


22 22 22 22 22 2


हम एक और मिसाल के साथ समझने की कोशिश करते हैं।


वरुण आंनद जी के कलाम से


क्या सो / चा है?


22    /   22


उस से मु/हब्ब्त


211  /  22


क्या कर / ते हो?


22    /   22


उस से मु / हब्बत


मतलब / पेशा?


22   /   22


उस से मु / हब्बत


इस के अ / लावा?


211   /  22


उस से मु / हब्बत


हमें देख कर साफ़ समझ आ रहा है कि 22 की जगह 211 लिया गया है यानी 22 में से एक 2 की जगह 11 कर दिया गया और साथ ही हम देखते हैं कि अरूज़ की एक दूसरी छूट - मात्रा गिराने का भी यहाँ इस्तेमाल किया गया है, जो कि बेशक जायज़ है।


इसी तरह हम मिसरे में कहीं भी किसी भी 22 की जगह 211 या 121  कर सकते हैं, सिर्फ़ एक बात का ख़याल रखना होगा कि ऐसा करने से लय ख़राब नहीं होनी चाहिए।


अगर लय टूट रही है तो फिर शेर ख़ारिज माना जाएगा।


आइए अब एक शेर और देखते हैं ताकि आपको इस बहर और इसकी लय का अंदाज़ा हो सके।


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तक्ती'अ करें -


पत्ता/पत्ता/ बूटा  / बूटा हाल ह  /मारा / जाने/ है


22/  22/  22 /   22/ 21 1 / 22  / 22  /2


जाने न   / जाने  /गुल ही ना /जाने / बाग़ तो /सारा/जाने  /है


2 11   / 2 2   /    211 / 2 2/  2 11   / 2 2/ 22  /2


उम्मीद है कि अब आप लोगों को मात्रिक बहर यानी बहर-ए-मीर समझ आ गई होगी।


शायरी एक फ़न है और कोई भी फ़न मश्क़(practice) मांगता है। जितनी ज़्यादा मश्क़ करेंगे ये उतनी ही सँवरती जाएगी।


ग़लती हर शख़्स करता है ग़लती के डर से पीछे हट गए तो सीख नहीं पायेंगे, ग़लती हो जाती है अगर तो सुधार करें और फिर एक नई कोशिश करें।


अब इसके बाद आप बहर-ए-मीर पर लिखी गई ग़ज़लें ढूंढ कर उसकी तक़्तीअ करने की कोशिश करें।


कोशिश कीजिए कि जितना ज़्यादा हो सके आप शायरों को पढ़ें और सिर्फ़ पढ़ें ही नहीं बल्कि साथ ही साथ उनके शेरों की बहर को पहचानने की कोशिश भी करें और फिर उन शेरों की तक़्तीअ करने की कोशिश करें।


इस तरह आप पढ़ते-पढ़ते बहुत कुछ सीख जाएँगे। आप को पता भी नहीं चलेगा और आप सही तरह से शेर कहना भी चालू कर देंगे।


जो लोग ग़ज़ल सीखना चाहते हैं और किसी बेहतर किताब की तलाश में हैं, और जिन्हें उर्दू पढ़ने में परेशानी होती है वो लोग वीनस केसरी जी की किताब "ग़ज़ल की बाबत" पढ़ सकते हैं और जो लोग उर्दू पढ़ना जानते हैं वो कमाल अहमद सिद्दीकी जी की किताब "आहंग और अरूज़" पढ़ सकते हैं।


मश्क़ें ज़ारी रखिए फिर मिलेंगे कुछ नए मसाइल और उनके हल के साथ।