ख़्यालों में न खोते हुए पहले तक़ती'अ करेंगे तो आपको पता चल जाएगा कि इसकी तक़ती'अ यूँ है:-
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़'अल
122/122/122/12
ये एक मुफ़रद मुज़ाहिफ़ (सालिम मुज़ाहिफ़) बहर है चूँकि सभी रुक्न सालिम हैं जिनमें से बस एक आख़िर के सालिम रुक्न पर हमने ज़िहाफ़ का इस्तेमाल किया है।नाम स्वरूप इसे बहर-ए-मुतक़ारिब मुसम्मन महज़ूफ़ कहते हैं।
ये नाम भी पिछले ब्लॉग के नाम से मिलता जुलता है साथ ही इसकी ख़ासियत भी मुतक़ारिब मुसम्मन सालिम बहर से मेल खाती है। उन ख़ासियतों को हम आप तक प्रश्नोत्तरी के माध्यम से प्रस्तुत करना चाहेंगे।
क्या मुतक़ारिब मुसम्मन महज़ूफ़ बहर से मेल खाती हुई कोई हिंदी छंद है?
जी हाँ, है, जिसे हम शक्ति छंद कहते हैं, हिंदी/संस्कृत काव्य संग्रह में इस छंद में लिखे काफ़ी श्लोक, गीत, दोहे आदि आपके नज़रों से गुज़र चुके होंगे। उदाहरण के तौर पर:
जला दीप तम को घटाया गया
बिना सूर्य के पथ दिखाया गया
पढ़ाया सुता को पिता ने तभी
सबल नारियों को बनाया गया
~मधु शुक्ला
इस ब्लॉग के शुरू में कहा गया "मुतक़ारिब की दूसरी प्रचलित आहंग", इस बिंदु को और सरलता से समझाएँ।
हाँ, बिल्कुल सही टिप्पणी उठाई है। दरअसल दूसरी प्रचलित आहंग कहने का हमारा तात्पर्य ये था कि 'मुतक़ारिब मुसम्मन सालिम' (122/122/122/122) बहर के बाद हमारे यहाँ उर्दू/हिंदी शायरों एवं बॉलीवुड लेखकों की ग़ज़ल/संगीत की जिस बहर में सबसे ज़्यादा भरमार है वो बहर-ए-मुतक़ारिब मुसम्मन महज़ूफ़ (122/122/122/12) ही है, या यूँ कहें कि इस बहर में कही गई ग़ज़लें इसके सालिम आहंग (122×4) में कही गई ग़ज़लों के बराबर संख्या को पहुँचती हैं।
इस आहंग में लिखे गए कुछ गानों के titles निम्न-लिखित हैं:-
~बहारों ने मेरा चमन लूटकर
~मेरे दोस्त क़िस्सा ये क्या हो गया
~सुहाना सफ़र और ये मौसम हसीं
~तुम्हारी नज़र क्यों ख़फ़ा हो गई
~दिखाई दिए यूं कि बेख़ुद किया
~हवाओं पे लिख दो हवाओं के नाम
इस बहर में आप अपने भावनाओं (ख़्याल) का इज़हार शायरी में और गहरे और सटीक तरीक़े से कर सकते हैं। अगर इज़हार-ए-ख़्याल के लिए लफ़्ज़ों का सही एवं उपर्युक्त चयन हो तो शायर हिंदी/उर्दू ग़ज़ल की सुंदरता और मिठास को आगे बढ़ाने के कार्य पर प्रगतिशील रहता है।
इसे उदाहरण स्वरूप समझाने के लिए बशीर बद्र का एक शेर मुलाहिज़ा फरमाएँ: