कहते हो हम इश्क़ में जाएँ पागल हो क्या - SAFEER RAY

कहते हो हम इश्क़ में जाएँ पागल हो क्या
बिन बातों के मुँह बिचकाएँ पागल हो क्या

अब बर्बाद महल्ला उजड़ी मंज़िल है दिल
तुम कहते हो तुमको बसाएँ पागल हो क्या

ठंडा पानी चुपड़ी रोटी खाकर ख़ुश हैं
तुमसे दिल को क्यों लगवाएँ पागल हो क्या

प्यार मोहब्बत महबूबा बेकार की बातें
हँसते दिल को क्यों तुड़वाएँ पागल हो क्या

नीला गगन ये खेत हरे और बहता पानी
क्यूँ पानी में आग लगाएँ पागल हो क्या

प्रेम अगर हो माथे पे यूँ इक़रार पढ़ो तुम
महफ़िल में आवाज़ लगाएँ पागल हो क्या

रो-रो कर अपनी आँखों को तुमने डुबोया
कहते हो सुरमा बन जाएँ पागल हो क्या

दिन है तुम्हारे सर्दी जैसे तुम ही जानो
अलाव की सरगम हम गाएँ पागल हो क्या

फूँका घर जलती उम्मीदें तबाह हो तुम
हम क्यूँ शाखों से उड़ जाएँ पागल हो क्या

क्यूँ लगती हो थकी थकी सी जानाँ अब तुम
चल कुल्हड़ भर चाय पिलाएँ पागल हो क्या

ख़त्म हुआ सब क़िस्सा 'सफ़ीर' चलता है अब
सुनकर सब है फिर चिल्लाएँ पागल हो क्या

- SAFEER RAY
10 Likes

More by SAFEER RAY

As you were reading Shayari by SAFEER RAY

Similar Writers

our suggestion based on SAFEER RAY

Similar Moods

As you were reading undefined Shayari