तन्हाई कुहन-ए-ग़म से मुख़्तसर रही
इक बस याद तिरी पूरी रात भर रही
शौक़-ए-रंग अश्क़ों ने सब धुल डाले हैं
अहल-ए-जुनूँ की ये हालत जानवर रही
ऐसे तजर्रुदे थे मैं ख़ूँ को लिखता था
और वो मेरी हालत से बेख़बर रही
मुझको सिखलाओ मत ज़िम्मेदारी क्या
क़तरा-हा-ए-अश्कों से आँख तर रही
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