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Khushboo Shayari

Here is a curated collection of Khushboo shayari in Hindi. You can download HD images of all the Khushboo shayari on this page. These Khushboo Shayari images can also be used as Instagram posts and whatsapp statuses. Start reading now and enjoy.

उस से मुहब्बत

झीलें क्या हैं?
उसकी आँखें

उम्दा क्या है?
उसका चेहरा

ख़ुश्बू क्या है?
उसकी साँसें

खुशियाँ क्या हैं?
उसका होना

तो ग़म क्या है?
उससे जुदाई

सावन क्या है?
उसका रोना

सर्दी क्या है?
उसकी उदासी

गर्मी क्या है?
उसका ग़ुस्सा

और बहारें?
उसका हँसना

मीठा क्या है?
उसकी बातें

कड़वा क्या है?
मेरी बातें

क्या पढ़ना है?
उसका लिक्खा

क्या सुनना है?
उसकी ग़ज़लें

लब की ख़्वाहिश?
उसका माथा

ज़ख़्म की ख़्वाहिश?
उसका छूना

दुनिया क्या है?
इक जंगल है

और तुम क्या हो?
पेड़ समझ लो

और वो क्या है?
इक राही है

क्या सोचा है?
उस से मुहब्बत

क्या करते हो?
उस से मुहब्बत

मतलब पेशा?
उस से मुहब्बत

इस के अलावा?
उस से मुहब्बत

उससे मुहब्बत........
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Varun Anand
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पानी कौन पकड़ सकता है

जब वो इस दुनिया के शोर और ख़मोशी से क़त'अ-तअल्लुक़ होकर इंग्लिश में गुस्सा करती है,
मैं तो डर जाता हूँ लेकिन कमरे की दीवारें हँसने लगती हैं

वो इक ऐसी आग है जिसे सिर्फ़ दहकने से मतलब है,
वो इक ऐसा फूल है जिसपर अपनी ख़ुशबू बोझ बनी है,
वो इक ऐसा ख़्वाब है जिसको देखने वाला ख़ुद मुश्किल में पड़ सकता है,
उसको छूने की ख़्वाइश तो ठीक है लेकिन
पानी कौन पकड़ सकता है

वो रंगों से वाकिफ़ है बल्कि हर इक रंग के शजरे तक से वाकिफ़ है,
उसको इल्म है किन ख़्वाबों से आंखें नीली पढ़ सकती हैं,
हमने जिनको नफ़रत से मंसूब किया
वो उन पीले फूलों की इज़्ज़त करती है

कभी-कभी वो अपने हाथ मे पेंसिल लेकर
ऐसी सतरें खींचती है
सब कुछ सीधा हो जाता है

वो चाहे तो हर इक चीज़ को उसके अस्ल में ला सकती है,
सिर्फ़ उसीके हाथों से सारी दुनिया तरतीब में आ सकती है,
हर पत्थर उस पाँव से टकराने की ख़्वाइश में जिंदा है लेकिन ये तो इसी अधूरेपन का जहाँ है,
हर पिंजरे में ऐसे क़ैदी कब होते हैं
हर कपड़े की किस्मत में वो जिस्म कहाँ है

मेरी बे-मक़सद बातों से तंग भी आ जाती है तो महसूस नहीं होने देती
लेकिन अपने होने से उकता जाती है,
उसको वक़्त की पाबंदी से क्या मतलब है
वो तो बंद घड़ी भी हाथ मे बांध के कॉलेज आ जाती है
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Tehzeeb Hafi
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जिस सम्त भी देखूँ नज़र आता है कि तुम हो
ऐ जान-ए-जहाँ ये कोई तुम सा है कि तुम हो

ये ख़्वाब है ख़ुशबू है कि झोंका है कि पल है
ये धुँद है बादल है कि साया है कि तुम हो

इस दीद की साअत में कई रंग हैं लर्ज़ां
मैं हूँ कि कोई और है दुनिया है कि तुम हो

देखो ये किसी और की आँखें हैं कि मेरी
देखूँ ये किसी और का चेहरा है कि तुम हो

ये उम्र-ए-गुरेज़ाँ कहीं ठहरे तो ये जानूँ
हर साँस में मुझ को यही लगता है कि तुम हो

हर बज़्म में मौज़ू-ए-सुख़न दिल-ज़दगाँ का
अब कौन है शीरीं है कि लैला है कि तुम हो

इक दर्द का फैला हुआ सहरा है कि मैं हूँ
इक मौज में आया हुआ दरिया है कि तुम हो

वो वक़्त न आए कि दिल-ए-ज़ार भी सोचे
इस शहर में तन्हा कोई हम सा है कि तुम हो

आबाद हम आशुफ़्ता-सरों से नहीं मक़्तल
ये रस्म अभी शहर में ज़िंदा है कि तुम हो

ऐ जान-ए-'फ़राज़' इतनी भी तौफ़ीक़ किसे थी
हम को ग़म-ए-हस्ती भी गवारा है कि तुम हो
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Ahmad Faraz

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