ज़ियादा कुछ नहीं हिम्मत तो कर ही सकते हैं
इक अच्छे काम की नीयत तो कर ही सकते हैं
ख़ुदा के हाथ से लिक्खा मुक़द्दर अपनी जगह
हम उसके बन्दे हैं मेहनत तो कर ही सकते हैं
ग़रीब लोग मरम्मत न कर सकें तो क्या
शिकस्ता घर की हिफ़ाज़त तो कर ही सकते हैं
हमारे बच्चे इजाज़त तलब नहीं करते
मगर बताने की ज़हमत तो कर ही सकते हैं
हज़ारों साल गुज़ारे हैं मुक़तदी रह कर
इक-आध बार इमामत तो कर ही सकते हैं
तो क्या हुआ जो शरीके-हयात बन न सके
तुम्हारी शादी में शिरकत तो कर ही सकते हैं
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