गुज़र रहा है वो लम्हा तो याद आया है
उस एक पल से कभी कितना ख़ौफ़ खाया है
उसी निगाह ने आँखों को कर दिया पत्थर
उसी निगाह में सब कुछ नज़र भी आया है
ये तंज़ यूँ भी है इक इम्तिहान मेरे लिए
तिरे लबों से कोई और मुस्कुराया है
बहे रक़ीब के आँसू भी मेरे गालों पर
ये सानेहा भी मोहब्बत में पेश आया है
ये कोई और है तेरी तरफ़ सरकता हुआ
अंधेरा होते ही जो मुझ में आ समाया है
हमारे इश्क़ से मरऊब इस क़दर भी न हो
ये ख़ूँ तो एक अदाकार ने बहाया है
यहाँ तो रेत है पत्थर हैं और कुछ भी नहीं
वो क्या दिखाने मुझे इतनी दूर लाया है
बहुत से बोझ हैं दिल पर ये कोई ऐसा नहीं
ये दुख किसी ने हमारे लिए उठाया है
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