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मेरे रोने पे मुझको टोकिये मत
कमाई है तो खर्चा कर रहा हूँ
एक नए और ख़ूबसूरत अंदाज़ में शायरी करने वाले शायर 'शारिक कैफ़ी' का असल नाम 'सय्यद शारिक हुसैन' है।
शारिक कैफ़ी का जन्म 02 नवंबर 1961 को भारत के राज्य उत्तर प्रदेश में हुआ। शारिक कैफ़ी के पिता का नाम जो खुद एक मशहूर शायर हैं कैफ़ी विजदानी है। कैफ़ी विजदानी का असल नाम 'सय्यद रिफ़त हुसैन है ।
सच तो ये है कि अदब की दुनिया में शारिक कैफ़ी साहब किसी तआरुफ़ के मोहताज नहीं हैं। शारिक कैफ़ी पेशे से एक फिलोसोफेर हैं।
कपड़ों की तरह लोग बदलते हैं हमसफ़र
और हमसे एक शख़्स पुराना नहीं हुआ
इस शेर में शारिक कैफ़ी कहना चाहते हैं कि लोग अक्सर कपड़ों की तरह महबूब बदलते रहते हैं लेकिन हम ने शुरुअ से एक शख़्स को चाहा और आज भी उसी को चाहते हैं।
शारिक कैफ़ी का शेर कहने का अंदाज़ जुदा है। शारिक कैफ़ी
हमेशा अपने अशआर में दुनिया को संदेश देते हैं।
शारिक कैफ़ी आज के हर नौजवान की पसंद हैं उन्होंने अपनी शायरी से हर दिल जगह बना ली है। आज के दौर की शायरी में शारिक कैफ़ी का नाम भी अदब से लिया जाता है।
जिस्म आया किसी के हिस्से में
दिल किसी और की अमानत है