हर तरफ़ ख़ूबसूरत फ़ज़ाएँ रहीं
राह पे राहगीरी हवाएँ रहीं
इस क़दर ज़ेहनी बीमार हालत में था
मेरे बिस्तर में बस अब दवाएँ रहीं
कैसे ज़िन्दा हूँ ये भी अजब राज़ है
साथ माँ की मिरी सब दुआएँ रही
गुल भी हैरान मंज़र-कशी देख कर
अब बहारें गईं ये ख़िज़ाएँ रहीं
शहर मेरा है इतना ये बीमार क्यूँ
सब अदब धुल गए बस अनाएँ रहीं
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