नहीं है फूल तो ख़ारों को छेड़ सकता हूँ - SAFEER RAY

नहीं है फूल तो ख़ारों को छेड़ सकता हूँ
वो राब्ता जो बहारों को छेड़ सकता हूँ

हज़ारों शम्स-ओ-कमर पहलू में हैं जिनके भी
उन अहल-ए-दिल के ग़ुबारों को छेड़ सकता हूँ

अगर इनायत-ए-ख़ूँ में था ज़िंदगी के भी
तो ज़िंदगी के सहारों को छेड़ सकता हूँ

तमन्ना रम्ज़ बता दूँ जो आ गई अब याँ
तेरी नज़र के इशारों को छेड़ सकता हूँ

फ़िराक़ ग़म भी है पैदा हरीस-ए-हायों पर
यूँ फ़र्दगी में भी यारों को छेड़ सकता हूँ

- SAFEER RAY
10 Likes

More by SAFEER RAY

As you were reading Shayari by SAFEER RAY

Similar Writers

our suggestion based on SAFEER RAY

Similar Moods

As you were reading undefined Shayari