इक दिन फ़ुज़ूल जाएगा सारा लिक्खा मेरा
राहों में काम आएगा बस तजुर्बा मेरा
मैं तुमसे कितनी भी शिद्दत से करूँ मोहब्बत
आख़िर अधूरा रह ही जाना है क़िस्सा मेरा
तुमको अभी कहाँ अंदाज़ा मेरे हुनर का
जानाँ तभी लगाते हो दाम सस्ता मेरा
तुमसे बिछड़ के भी चाहत कम न हो सकी ये
सोचो तुम्हें पा कर के क्या हाल होता मेरा
वो लेटा है किसी की आगोश में सुकूँ से
कमबख़्त ये फ़क़त हो नज़रों का धोका मेरा
इक शख़्स ने मुझे अपने दिल से क्या निकाला
महफ़िल में बढ़ गया अशआरों का दर्जा मेरा
मैं उसकी हूँ मोहब्बत पहली मुझे यक़ीं है
वो याद उम्र-भर रक्खेगा ये बोसा मेरा
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