दुश्मन से जंग में मिली रहमत हराम है
ख़ैरात में मिली हो वो इज़्ज़त हराम है
दुनिया में रोज़-रोज़ तो आना नहीं तुझे
गुमनामियों में गर हुई रुख़सत हराम है
संगत करो अलीम की पाना हो ग़र ख़ुदा
ज़ाहिल ग़लीज़ लोगों की सोहबत हराम है
बंदा है नेक तू तो मुशक़्क़त से कुछ कमा
मेहनत बिना मिले जो वो दौलत हराम है
उपमन्यु तेरे नाम के चर्चे हों तेरे बाद
नेकी कमा ले वर्ना तो हर गत हराम है
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