अरसे भर से मुस्तक़िल बोलता गया हूँ मैं
जाने जानता हूँ क्या क्या छुपा रहा हूँ मैं
ख़ाक मेरा राब्ता ज़िंदगी की रीत से
गाना लाज़मी सा है गुनगुना रहा हूँ मैं
यार तेरी आरज़ू शौक़ थी या जुस्तुजू
तुझको ढूँढता हुआ ख़ुद से आ मिला हूँ मैं
छोड़ अब वो जा चुकी लौट कर न आएगी
आइने के रू-ब-रू बड़बड़ा रहा हूँ मैं
मुझको मेरे हाल पर छोड़ कर चले गए
लोग जिनके इल्म की इब्तिदा रहा हूँ मैं
तुम तो कोई ख़्वाब हो जिसको रात दिन यूँ ही
देखता रहा हूँ मैं सोचता रहा हूँ मैं
दर्द की ये इन्तिहाँ दर्द बन गया दवा
होश बन गया नशा इतना पी चुका हूँ मैं
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