अदब की महफ़िलों में भी मैं जाना छोड़ दूँगा
तू कह देगी अगर तो मैं ज़माना छोड़ दूँगा
मिली जो तुम किसी इक रात भी तो तय रहा ये
मैं जुगनू को यूंँ अपने घर बुलाना छोड़ दूँगा
नहीं पलता किसी का पेट शौहरत से, मगर हाँ
अगर दो दाद तुम तो मैं कमाना छोड़ दूँगा
अकेले में यूँ कब से राग छेड़े जा रहा हूँ
मिली संगत न तेरी तो मैं गाना छोड़ दूँगा
सुना है वो निराशों को लगाती है गले से
उसे पाने को अब मैं मुस्कुराना छोड़ दूँगा
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