समय हाथों से निकला जा रहा है
परिंदा वक़्त का समझा रहा है
मुसाफ़िर की तरह हम सब यहाँ हैं
कोई आया तो कोई जा रहा है
अभी भी वक़्त है यारो सँभलिए
समय अब आईना दिखला रहा है
जहाँ इंसान भी गायब मिलेगा
अभी बस वो ज़माना आ रहा है
जरा सोचो कि ईमाँ जब न होगा
अभी तो आदमी इतरा रहा है
सलीक़े से हमें रहना ही होगा
भले मौसम हमें भटका रहा है
'धरम' अब तो बुराई छोड़ भी दे
जो दानिशमंद है समझा रहा है
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