ये लोग मुझको बुला लेंगे फिर किनारे पर
सो देखता ही नहीं अब किसी इशारे पर
मैं घर से निकला था रोटी कमाने के ख़ातिर
तमाम उम्र किया रक़्स इक़ इशारे पर
मैं हुँ वो शख्स ज़माने में मुफलिसी की मिसाल
है उस की चाह के हो घर भी इक सितारे पर
हमें न चाहो किसी और को तो चाहोगे
करम ये होगा तो फ़िर क्यों नही हमारे पर
हमें हमारी कहानी से ही निकाला गया
सितारे तोड़ न पाए थे उस इशारे पर
वो काला सूट पहनकर जो मुस्कुराती है
हज़ार उम्र हो कुर्बान उस नज़ारे पर
उसे यकीन दिलाना है अपनी चाहत का
समझ लो रक़्स तो करना है पर शरारे पर
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