वो भोले बनकर हैं ऐसे बैठे के जैसे कोई ख़ता नहीं है
गले लगा कर वो पूछते हैं यक़ीन क्या अब रहा नहीं है
यक़ीन कर लो है कहना उसका मगर मैं कैसे यक़ीन कर लूँ
थी सोई बाँहों में ग़ैर की वो उसे लगा कुछ पता नहीं है
हज़ारों वादे किए थे उसने जुदा न होंगे वचन लिया था
है बेवफ़ा वो भी सब के जैसी किसी से वो भी जुदा नहीं है
वो तोड़ कर ख़ुश है दिल ये मेरा ख़ुदा से भी वो डरा नहीं है
ख़ुदा उसे भी दे उसके जैसा वो कह रहा है ख़ुदा नहीं है
तिरी तो क़िस्मत यही है नाज़िम कि रोते रहना है दर्द लेकर
जो दर्द-ए-दिल को सुकून दे दे जहाँ में ऐसी दवा नहीं है
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