सुबह की सुर्ख़ लाली में तुम्हारा नाम लिखता हूँ
अमावस रात काली में तुम्हारा नाम लिखता हूँ
तुम्हारा ही असर है सब यहाँ हर बाग़ है रौशन
कली गुल और डाली में तुम्हारा नाम लिखता हूँ
सुबह होती नहीं मेरी तुम्हें सोचूँ नहीं जब तक
सुबह की चाय प्याली में तुम्हारा नाम लिखता हूँ
सजाया है तुम्हें दुल्हन सरीखे ख़्वाब में अपने
मैं नथ में और बाली में तुम्हारा नाम लिखता हूँ
नहीं हूँ देखता यूँ तो तुम्हारे ख़्वाब मैं अक्सर
मगर मैं बे-ख़याली में तुम्हारा नाम लिखता हूँ
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