ये और बात तेरे दिल में घर नहीं करूँगा
पर इस मकाम से आगे सफ़र नहीं करूँगा
दुआएँ क्या दूँ उसे ज़िंदगी की, इतना है
मैं ज़हर हूँ मगर उस पर असर नहीं करूँगा
किसी से झूठी मोहब्बत किसी से सच्चा बैर
मैं कर तो सकता हूँ ये सब मगर नहीं करूँगा
दवाम बख़्श तो सकता हूँ ख़ामोशी को मगर
ये काम मैं किसी आवाज़ पर नहीं करूँगा
किए जो वक्त पर उसका मआल देख चुका
कोई भी काम मैं अब वक्त पर नहीं करूँगा
गुज़ार दूँगा मैं अपने फ़िराक़ में ख़ुद को
ख़ुद अपने होने की ख़ुद को ख़बर नहीं करूँगा
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