जो भी कहने को मीर कहते हैं
बात उतनी वज़ीर कहते हैं
मुत्तक़ी करके दीन का सौदा
ख़ुद को अहले ज़मीर कहते हैं
बादशाहों से कम नहीं रुतबा
आप ख़ुद को फ़क़ीर कहते हैं
लोग आकर फ़रेब की ज़द में
बुत-परस्तों को पीर कहते हैं
इश्क़ हो आरज़ी तो मत करना
बात इतनी कबीर कहते हैं
इश्क़ की डोर से यूँ बाँधा है
लोग मुझको असीर कहते हैं
एक मिसरा तो कह के दिखलाओ
जिस तरह शेर मीर कहते हैं
पीर मेरा अली है लासानी
पीर भी जिसको मीर कहते हैं
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