बज़ाहिर जो हिमायत कर रहे हैं
वही पीछे बग़ावत कर रहे हैं
पता ग़ैरों से ये मुझको चला है
मेरे अपने अदावत कर रहे हैं
बहुत दिन बाद लौटा हूँ जो घर तो
तेरे तेवर शिकायत कर रहे हैं
वही पलकें तुम्हारी कह रही हैं
वही गेसू शिकायत कर रहे हैं
ख़ुदा का शुक्र है अच्छे सुख़नवर
मेरे शेरों पे हैरत कर रहे हैं
बहुत ही एहतियातों को बरतना
मोहब्बत में नसीहत कर रहे हैं
ये सौदागर क़यामत से डराकर
ख़ुदा की अब तिजारत कर रहे हैं
कोई हक़ पर हो तो सर को कटाए
ये नेज़े फिर से हसरत कर रहे हैं
अमीर-ए-शहर के क़िस्से सुना कर
नई नस्लों को ग़ारत कर रहे हैं
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