मेरी मुहब्बत, मेरी चाहत, तुम ही हो
इश्क़ में जो है, हाए आफ़त तुम ही हो
दुनिया ज़ालिम, माना मैंने, लेकिन अब
छोड़ो सब कुछ, मेरी हिम्मत, तुम ही हो
हम आवारा तुम पे मरते, और बोलें
मानो तुम ये, घर की इज़्ज़त, तुम ही हो
काले भद्दे, लगते होंगे, हाँ लेकिन
अच्छी सूरत, अच्छी सीरत, तुम ही हो
गाल तुम्हारे, प्यारे प्यारे, और सुनो
मेरे ख़ातिर, मीठी शरबत, तुम ही हो
कारण सबकी, जो मैं लिखता, आज सुनो
मेरी लेखन, ग़ज़ल की बाबत, तुम ही हो
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