भला क्या ही चला जाता तुम्हारा
मुझी से होता जो रोका तुम्हारा
तुम्हें ससुराल घर से भेजते जो
मेरे घर तक सफ़र होता तुम्हारा
कोई संदूक़ घर में खोलता तो
वो पाता शादी का जोड़ा तुम्हारा
सिलेंडर बैग राशन नाज़ के बाद
उठाता सर पे मैं बच्चा तुम्हारा
मेरी माँ गाँव जाती जब कभी तो
हाँ घर में चलता बस सिक्का तुम्हारा
नहीं लिखना था कुछ भी तुम पे लेकिन
सभी को सुनना है क़िस्सा तुम्हारा
मैं कर लूँ ख़ुदकुशी भी आज ही पर
जलेगा मुझमें फिर हिस्सा तुम्हारा
तुम्हें चाहा था हम दोनों ने फिर क्यों
मिला सौरभ को बस धोका तुम्हारा
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