अब हमें इस सफर से निकलना हैं

  - Amol

अब हमें इस सफर से निकलना हैं
कुछ दिनों बाद घर से निकलना हैं

हैं नदामत इलाही , रहम बरसा
इस ख़ुदा-ए-कहर से निकलना हैं

चूम लूँ हाथ बे- खौफ उस के बस
ऐ वबा तेरे डर से निकलना हैं

रात के ख्वाब जो याद देती हैं
बस मुझे उस सहर से निकलना हैं

याद कूचा -ए- जाँ पाँव को आये
अब मुझे इस शहर से निकलना हैं

तू हैं 'दीदार' , वो मुंतज़िर फिर भी ?
बद-अहद इस नजर से निकलना हैं

  - Amol

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