0

अब हमें इस सफर से निकलना हैं - Amol

अब हमें इस सफर से निकलना हैं
कुछ दिनों बाद घर से निकलना हैं

हैं नदामत इलाही , रहम बरसा
इस ख़ुदा-ए-कहर से निकलना हैं

चूम लूँ हाथ बे- खौफ उस के बस
ऐ वबा तेरे डर से निकलना हैं

रात के ख्वाब जो याद देती हैं
बस मुझे उस सहर से निकलना हैं

याद कूचा -ए- जाँ पाँव को आये
अब मुझे इस शहर से निकलना हैं

तू हैं 'दीदार' , वो मुंतज़िर फिर भी ?
बद-अहद इस नजर से निकलना हैं

- Amol

Ghar Shayari

Our suggestion based on your choice

More by Amol

As you were reading Shayari by Amol

Similar Writers

our suggestion based on Amol

Similar Moods

As you were reading Ghar Shayari