वो हक़ीक़त भी ख़्वाब कहता है
लफ़्ज़-ए-अव्वल किताब कहता है
जब से हरकत सुनी है साँसों की
तब से हरदम शबाब कहता है
बात होगी अगर अदाओं की
हुस्न गोया अज़ाब कहता है
होंठ पर होंठ उसने रक्खा फिर
लब को तब से गुलाब कहता है
मेरी हर बात अच्छी लगती है
इस जहाँ को ख़राब कहता है
जब कभी वो क़रीब आता है
जाँ हटाओ नक़ाब कहता है
जब से हासिल किया मोहब्बत को
खु़द को इश्क़-ए-निसाब कहता है
शेर अच्छा बुरा पढूँ जो भी
वो फ़क़त लाजवाब कहता है
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