दुआएँ भी नहीं जाती जहाँ तक

  - Shriyansh Qaabiz

दुआएँ भी नहीं जाती जहाँ तक
हुए हो दूर तुम मुझसे वहाँ तक

उदासी हमसफ़र बनकर चली थी
मगर अब पूछ बैठी है , कहाँ तक

अचानक ज़िंदगी रूठेगी हमसे
अचानक ही कहेगी बस यहाँ तक

मुसलसल चीख़ता हूँ सोचता हूँ
सदा जाएगी कैसे दो-जहाँ तक

मिरे मुर्शिद इजाज़त दें तो फिर मैं
ज़रा आराम कर लूँ इम्तहाँ तक

  - Shriyansh Qaabiz

More by Shriyansh Qaabiz

As you were reading Shayari by Shriyansh Qaabiz

Similar Writers

our suggestion based on Shriyansh Qaabiz

Similar Moods

As you were reading undefined Shayari