दुआएँ भी नहीं जाती जहाँ तक
हुए हो दूर तुम मुझसे वहाँ तक
उदासी हमसफ़र बनकर चली थी
मगर अब पूछ बैठी है , कहाँ तक
अचानक ज़िंदगी रूठेगी हमसे
अचानक ही कहेगी बस यहाँ तक
मुसलसल चीख़ता हूँ सोचता हूँ
सदा जाएगी कैसे दो-जहाँ तक
मिरे मुर्शिद इजाज़त दें तो फिर मैं
ज़रा आराम कर लूँ इम्तहाँ तक
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